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अचेतनज्ञानवादः
२६७ संसर्ग विशेषवशाद्विप्रलब्धो बुद्धिचैतन्ययोः सन्तमपि भेदं नावधारयत्ययोगोलकादिवाग्नेः । न चात्रापि भेदो नास्तीत्यभिधातव्यम् ; उभयत्र रूपस्पर्शयोर्भेदप्रतीतेः । अयोगोलकस्य हि वृत्तसन्निवेशः कठिनस्पर्शश्चान्योऽग्नि ( ग्ने ) र्भासुररूपोष्णस्पर्शाभ्यां प्रमाणतः प्रतीयते । ततो यथात्राऽन्योऽन्यानुप्रवेशलक्षणसंसर्गाद्विभागप्रतिपत्त्यभावस्तथा प्रकृतेपोत्यप्यसाम्प्रतम् ; वह्नययोगोलकयोरप्यभेदात् । अयोगोलकद्रव्यं हि पूर्वाकारपरित्यागेनाग्निसन्निधानाद्विशिष्ट रूपस्पर्शपर्यायाधारमेकमेवोत्पन्नमनुभूयते अामाकारपरित्यागेन पाकाकाराधारघटद्रव्यवत् । कथं तर्हि तस्योतरकालं तत्पर्यायाधारताया विनाशविशेष के कारण लोहे का गोला अभिन्न दिखाई देता है, लोहा और अग्निमें भेद नहीं है ऐसा भी नहीं कह सकते, क्योंकि उन दोनों में रूप तथा स्पर्श का पृथक्पना स्पष्ट ही दिखता है, अर्थात् लोहे का गोला गोल गोल बड़ा होता है, कठोर स्पर्शवाला भी होता है, और अग्नि चमकीले रूपवाली तथा उष्ण स्पर्श युक्त होती है । इस प्रकार प्रत्यक्ष से ही प्रतीत होता है। इसलिये जैसे लोहा और अग्नि इन दोनों में अन्योन्यप्रवेशानु प्रवेशलक्षण संबंध हो जाने से विभाग का ज्ञान नहीं होता है, वैसे ही बुद्धि और चैतन्य में परस्पर अनुप्रवेश होने से भेद नहीं दिखता।
जैन-यह कथन ठीक नहीं है, क्योंकि अग्नि और लोहे के गोले में भी भेद नहीं रहता, लोहे का गोला अग्नि के संसर्ग से अपने पूर्व आकार का त्यागकर विशिष्ट पर्यायवाला एवं भिन्न ही स्पर्श तथा रूपवाला बन जाता है, जिस प्रकार घट अपने पहिले कच्चे आकार को छोड़कर उत्तरकाल में पाक के प्राकार को धारण करता है।
शंका- यदि लोहे का गोला अग्नि ही बन जाता है तो आगे जाकर उस पर्याय को आधारता का विनाश कैसे दिखाई देता है ?
समाधान – ऐसी शंका करना ठीक नहीं, क्योंकि उस लोहे के गोले का जो अग्निरूप परिणमन हुआ है वह तत्काल ही नष्ट होता हुआ नहीं देखा जाता है। देखिये - अनेक प्रकार के परिणमन और संबंध वस्तुनों में पाये जाते हैं, कोई वस्तु तो कुछ परिणामन-उपाधि का कारण मिलने पर उस उपाधिरूप बन जाती है और उपाधि के हटते ही तत्काल उस परिणमन या पर्याय से रहित हो जाती है, जैसे जपापुष्प का सम्बन्ध पाकर स्फटिक तत्काल लाल बन जाता है और उसके हटते ही तत्काल अपने सफेद स्वभाव में आ जाता है । अन्य कोई वस्तु का परिणंमन इस प्रकार भी होता है कि वह कुछ काल तक बना रहता है, जैसे सुन्दर स्त्री माला प्रादि विषयों के सम्बन्ध से प्रात्मा में सुख पर्याय कुछ समय तक बनी रहती है, पदार्थों का यह
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