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चित्राद्वैतवादः
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प्राचार्य ने इनसे पूछा है कि अशक्य विवेचन बुद्धि में क्यों है ? क्या नीलादि प्राकारों का उस बुद्धि से अभिन्न होना इसका कारण है ? या वे प्राकार उसी एक विवक्षित बुद्धि से ही अनुभव में आते हैं यह कारण है ? प्रथम कारण मानने पर तो हेतु साध्यसम हो जाता है, अर्थात् साध्य "बुद्धि से अभिन्न पदार्थ का होना है" और "अशक्य विवेचन होने से' ऐसा यह हेतु है, सो अशक्यविवेचन और अभिन्न का अर्थ एक ही है, अत: ऐसे साध्यसम हेतु से साध्य सिद्ध नहीं होता और उसके प्रभाव में चित्राद्वैत गलत ठहरता है, तथा सुगत और संसारी इनके एक होने का प्रसंग भी प्राता है, अतः क्रम और अक्रम से नीलादि अनेक पदार्थ के आकारवाला ज्ञानयुक्त प्रात्मा सिद्ध होता है और नोलादि बाह्य पदार्थ भी सिद्ध होते हैं।
चित्राद्वैतवाद का सारांश समाप्त
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