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________________ * * चित्राद्वैतवादः । एतेन "चित्रप्रतिभासाप्येकैव बुद्धिर्बाह्यचित्रविलक्षणत्वात्, शक्य विवेचनं हि बाह्य चित्रमशक्यविवेचनास्तु बुद्धेर्नीलादय आकाराः" इत्यादिना चित्राद्वैतमप्युपवर्णयन्नपाकृतः; अशक्यविवेचनत्वस्यासिद्ध: । तद्धि बुद्धे रभिन्नत्वं वा, सहोत्पन्नानां नीलादीनां बुद्धयन्तरपरिहारेण विवक्षितबुद्ध्यैवानुभवो वा, भेदेन विवेचनाभावमात्र या प्रकारान्तरासम्भवात् ? तत्राद्यपक्षे साध्य विज्ञानाद्वैत का निराकरण होने से ही चित्राद्वैतवाद का भी निराकरण हो जाता है-ऐसा समझना चाहिये । चित्राद्वैतवादी का ऐसा कहना है कि बुद्धि (ज्ञान) में जो नाना आकार प्रतिभासित होते हैं उनका विवेचन करना अशक्य है, अत: वह चित्र प्रतिभासवाला ज्ञान एक ही है अनेक रूप नहीं है, क्योंकि वह बाह्य आकारों से विलक्षण हुआ करता है, बाह्य चित्र नाना आकार जो हैं उनका तो विवेचन कर सकते हैं, किन्तु नील पीत आदि बुद्धि के आकारों का विवेचन होना शक्य नहीं है, मतलब यह है कि यह ज्ञान या बुद्धि है और ये नील पीत आदि आकार हैं ऐसा विभाग बुद्धि में होना अशक्य है, सो इस प्रकार का विज्ञानाद्वैतवादी के भाई चित्राद्वैतवादी का यह कथन भी गलत है, यहां इतना और समझना चाहिये कि विज्ञानाद्वैतवादी ज्ञान में होने वाले नील पीत या घट पट आदि आकारों को भ्रान्त-असत्य मानता है और चित्रातवादी उन प्राकारों को सत्य मानता है। चित्राद्वैतवादी का कथन असत्य क्यों है यह उसे अब आचार्य समझाते हैं कि आप जो बुद्धि के आकारों का विवेचन होना अशक्य मानते हैं सो यह मान्यता असिद्ध है, हम पूछते हैं कि उन आकारों का विवेचन करना अशक्य क्यों है, क्या वे नील पीतादि आकार बुद्धि से अभिन्न हैं। इसलिये, अथवा बुद्धि के साथ उत्पन्न हुए नील Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001276
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 1
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1972
Total Pages720
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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