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विज्ञानाद्वैतवाद:
२४१
न चासिद्धव्याप्तिकलिङ्गप्रभवादनुमानात्तथागतस्य स्वमतसिद्धिः; परस्यापि तथाभूतात्कार्याद्यनुमानादीश्वराद्यभिमतसाध्य सिद्धिप्रसङ्गात् । न चानयोः कुतश्चित् प्रमाणावधाप्तिः प्रसिद्धाः; ज्ञानवजडस्यापि परतो ग्रहणसिद्धया हेतोरनै कान्तिकत्वानुषङ्गात् ।
__ यदप्युक्तम्-जडस्य प्रतिभासायोगादिति, तत्राप्यप्रतिपन्नस्यास्य प्रतिभासायोगः, प्रतिपन्नस्य वा ? न तावदप्रतिपन्नस्यासो प्रत्येतु शक्यः, अन्यथा सन्तानान्तरस्याप्रतिपन्नस्य स्वप्रति
शंका- सभी ज्ञान अपने में अवभासमानत्व और ज्ञानत्व की व्याप्ति को जाननेवाले होते हैं ऐसा हम मानते हैं ।
__ समाधान- संपूर्ण ज्ञानों को जाने बिना इस प्रकार का निश्चय आप कर नहीं सकते । जिस हेतु की साध्य के साथ व्याप्ति सिद्ध नहीं हुई है उस हेतु से उत्पन्न हुए अनुमान से आपके मत की ( नील पीत आदि पदार्थ ज्ञान स्वरूप हैं इसी मन्तव्य की) सिद्धि कैसे हो सकती है, अर्थात् नहीं हो सकती। अन्यथा परवादी जो योग आदिक हैं उनके यहां भी असिद्ध कार्यत्व आदि हेतुवाले अनुमान के द्वारा ईश्वर और उसके सृष्टि कर्तृत्व की सिद्धि हो जायगी।
भावार्थ- सौगत यदि अपने प्रसिद्ध स्वरूप वाले प्रवभासमानत्व हेतु से पदार्थों को ज्ञान रूप सिद्ध करना चाहते हैं तो सभी मतवाले अपने २ असिद्ध हेत्वाभासों से ही अपने इष्ट तत्त्व की सिद्धि करने लगेंगे। पर्वत, तनु, तरु आदि पदार्थ बुद्धिमान् के द्वारा निर्मित हैं क्योंकि वे कार्यरूप हैं, जो जो कार्यरूप होते हैं वे वे बुद्धिमान से निर्मित होते हैं, जैसे कि वस्त्र घट आदि, इत्यादि अनुमान के द्वारा ईश्वर कर्तृत्ववाद सिद्ध हो जावेगा, ऐसे ही अन्य २ मत के भी सिद्ध होने का प्रसङ्ग प्राप्त होगा, अत: इस आपत्ति से बचने के लिये प्रत्येक वादी का कर्तव्य होता है कि वह वादी परवादी प्रसिद्ध हेतु के द्वारा ही अपना इष्ट तत्त्व सिद्ध करे।
सौगताभिमत इन साध्य और साधन अर्थात् ज्ञानत्व और अवभासमानत्व की व्याप्ति किसी प्रमाण से भी सिद्ध नहीं है, और दूसरी बात एक यह कि साध्य और साधन के ज्ञानों का व्याप्ति ज्ञान के द्वारा ग्रहण होना माना जाय तो अन्य नील आदि जड़ पदार्थ भी पर के द्वारा ( ज्ञान के द्वारा ) ग्रहण किये जाते हैं ऐसा सिद्ध होने से अवभासमानत्व हेतु अनैकान्तिक दोष युक्त होता है। भावार्थ- "विपक्षे ऽप्यविरुद्धवृत्तिरनैकान्तिकः” जो हेतु विपक्ष में भी अविरुद्ध रूप से रहता है वह हेतु अनैकान्तिक होता है, यहां पर बौद्ध संमत अवभासनत्व हेतु विपक्ष जो पर से प्रति
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