________________
१६०
प्रमेयक मलमार्त्तण्डे
संवेदनं स इति चेत्; न; तत्र परमार्थतः स्पाष्टयसद्भावे अतीन्द्रियार्थवेदिनो निषेधो न स्यात्, तत्स्मृतिवत् अन्यस्यापीन्द्रियमन्तरेण वैशद्यसम्भवात् । प्रथात्र पारम्पर्येणेन्द्रियादेव वैशद्यम्; न; तदविशेषात्सर्वस्यास्तत्प्रसङ्गात् । श्रथानुभवेन सह क्षीरोदकवदविवेकेनोत्पादोऽस्याः प्रमोषः ननु कोयमविवेको नाम-भिन्नयोः सतोरभेदेन ग्रहरणम् संश्लेषो वा, आनन्तर्येण उत्पादो वा ? प्रथमपक्षे विपरीतख्यातिरेव । संश्लेषस्तु ज्ञानयोर्न सम्भवत्येव ग्रस्य मूर्त्तद्रव्येष्वेव प्रतीतेः । ग्रानन्तर्येणोत्पादस्य स्मृतिप्रमोषरूपत्वे अनुमेयशब्दार्थेषु देवदत्तादिज्ञानानां स्मरणानन्तरभाविनां स्मृतिप्रमोषता
प्रसङ्गः स्यात् ।
भावार्थ - प्रभाकर मतवाले प्रतीन्द्रिय ज्ञानीको नहीं मानते हैं, उनके लिये आचार्य कहते हैं कि "यह रजत है" इस प्रकारके ज्ञानमें आप लोग अतीतकालका अधिक स्पष्ट रूपसे ग्रहण मानते हो सो जैसे बिना इन्द्रियके इस ज्ञानमें स्पष्टता आयो ऐसा कहते हो वैसे ही सर्वज्ञके ज्ञानमें इन्द्रियों बिना स्पष्टता होने में क्या बाधा है ? अर्थातु कुछ भी नहीं ।
प्रभाकर कहे कि इस रजत की स्मृति में परंपरा से इन्द्रियके द्वारा ही विशदता आती है किन्तु इन्द्रियोंके अभाव में सर्वज्ञके ज्ञानमें विशदता नहीं आ सकती, सो ऐसा नहीं कह सकते । ऐसी इन्द्रिय परंपरा सभी ज्ञानोंमें मौजूद होनेसे सभी ज्ञानों को विशद माननेका प्रसंग प्राप्त होगा ।
पांचवा पक्ष - प्रनुभव [ प्रत्यक्ष ] के साथ दूध पानीकी तरह स्मृतिका अभेद रूपसे उत्पन्न होना स्मृति - प्रमोष है ऐसा कहो तो वह क्या है ? दो भिन्न वस्तुप्रका अभेद रूपसे ग्रहण होना, कि संश्लेष होना, अथवा अनंतर रूपसे उत्पन्न होना ?
प्रथम पक्ष में वही विपरीत ख्याति हुयी । संश्लेष तो ज्ञानोंमें होता ही नहीं वह तो मूर्त्तिक द्रव्यों में होता है । अनंतर रूपसे ज्ञान उत्पन्न होनेको स्मृति प्रमोष माने तो अनुमेय आदि पदार्थों में तथा शब्द - आगम विषयक, अथवा अन्य उपमेयादि विषयों में जो देवदत्तादि व्यक्तियोंको ज्ञान होते हैं वे ज्ञान भी तो स्मरणके बाद ही उत्पन्न होते हैं, अतः उनको भी स्मृति प्रमोष रूप मानना पड़ेगा ।
भावार्थ- - प्रभाकर मतवाले पांचवे पक्षके अनुसार स्मृतिप्रमोषका इस प्रकारसे लक्षण करते हैं कि दूध और पानीकी तरह प्रविवेक - अभेद रूपसे ज्ञान पैदा होना स्मृति प्रमोष है, इस कथन पर प्रश्न होता है कि अविवेक किसको कहना ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org