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________________ [ १२ ] महान ताकिक ग्रन्थोंके रचयिता होने के कारण ही है। शिलालेखोंके आधार पर इनके सधर्मा श्री कुलभूषण मुनि माने जाते हैं। समय-आपका समय पाठवीं शताब्दीसे लेकर दसवीं के पूर्वार्ध तक माना जाता है। प्राचार्य जिनसेनने आदिपुराण में एक श्लोक लिखा है, इससे भी यही सिद्ध होता है: चन्द्रांशु शुभ्रयशसं प्रभाचन्द्र कवि स्तुवे । कृत्वा चन्द्रोदयं येन शखदाह्लादितं जगत् ।। उक्त चन्द्रोदयका अर्थ प्राचार्य कृत न्याय कुमुदचन्द्र से है । प्रमेयकमल मातन्ड और न्याय कुमुदचन्द्र से ही प्रभाचन्द्राचार्यका सही समय ज्ञात होता है। यह समय "भोजदेवराज्ये या जयसिंह देव राज्ये" इस प्रशस्ति पदसे प्रतीत होता है। राजा भोजकी योग सूत्रपर लिखी गयी टीका राज मार्तण्ड है । हो सकता है मार्तण्ड शब्द परस्पर प्रभावी हो । पं० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य, पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री, मुख्तार साहब तथा नाथूरामजी प्रेमी आदि विद्वानोंने काफी ऊहापोह के साथ आचार्यका समय ईस्वी सन् १८० से १०६५ तकके बीच में माना है। यह समय आचार्य द्वारा रचित रचनाओं तथा उत्तरवर्ती रचनाओंके आधारपर निश्चित किया है । विशेष जानकारी के लिये पंडित महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य द्वारा लिखित प्रमेयकमल मार्तण्ड [ मूल संस्कृत मात्र ] की द्वितीयावृत्ति की प्रस्तावना देखनी चाहिये । प्रभाचन्द्राचार्य की रचनायें: प्राचार्य प्रभाचन्द्र विशेष क्षयोपशमके धनी थे । जहां तक व्युत्पत्ति का प्रश्न है आप असाधारण व्युत्पन्न पुरुष थे। आपने अपनी लेखनी न केवल न्याय विषय में ही चलायी अपितु सभी विषयों पर आपका असाधारण अधिकार था । दर्शन विषयक ज्ञानमें आपको सभी दर्शनोंका [ भारतीय ] ज्ञान था । वेद, उपनिषद, स्मृति, सांख्य, योग, वैशेषिक, न्याय, मीमांसक, बौद्ध, चार्वाक आदि दर्शनोंका आपने अच्छा अध्ययन किया था। साथ ही वैयाकरण भी थे, इन्हींने जैनेन्द्र व्याकरणपर जैनेन्द्र न्यास लिखा है। इसी प्रकार साहित्य, पुराण, वेद, स्मृति, उपनिषद आदिपर पूरा अधिकार था। इनकी रचनाओं में उक्त ग्रन्थोंका कुछ ना कुछ अंश अवश्य मिलेगा। पंडित महेन्द्रकुमार न्यायाचार्यने अपनी प्रस्तावनामें इस विषयका सुविस्तृत विवेचन किया है उसी प्रस्तावनाके आधार पर इस प्रस्तावनाके कई स्थल लिखे हैं, श्रवण बेलगोलाके लेखमें पद्मनंदी सैद्धांतिक का नाम आया है, कुलभूषण उनके शिष्य थे, तथा प्रभाचन्द्राचार्य कुल भूषण यति के सधर्मा थे। इस लेख में प्रभाचन्द्रको शब्दाम्भोज भास्कर और प्रथित तर्क ग्रन्थकार लिखा है अविद्ध कर्णादिक पद्मनंदि सैद्धान्तिकाख्योऽजनि यस्य लोके. कौमारदेव तिता प्रसिद्धि ीया त्त सो ज्ञाननिधिस्स धीरः । तच्छिष्यः कुलभूषणाख्य यतिपश्चारित्रवारी निधिः । सिद्धांताम्बुधि पारगो नतविनेयस्तत् सधर्मो महान् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001276
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 1
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1972
Total Pages720
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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