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प्रमेयकमलमार्तण्डे
निश्चयात्मकत्वाद्वा ? प्रथमपक्षोऽयुक्तः, निर्विकल्पविषय एव तत्प्रवृत्त्यभ्युपगमात्, अन्यथा अगृहीतार्थग्राहित्वेन प्रमाणान्तरत्वप्रसङ्गः। द्वितीयपक्षेपि स्वरूपे निश्चयात्मकत्वं तस्य, अर्थरूपे वा ? न तावत्स्वरूपे
___ "सर्वचित्तचैतानामात्मसंवेदनं प्रत्यक्षम्" [ न्यायबि• पृ० १६ ] इत्यस्य विरोधात् । नाप्यर्थेविकल्पस्यैकस्य निश्चयानिश्चयस्वभावद्वयप्रसङ्गात् । तच्च परस्परं तद्वतश्चैकान्ततोभिन्नं चेत् ; समवायाद्यनभ्युपगमात् सम्बन्धासिद्ध : 'बलवान्विकल्पो निश्चयात्मकत्वात्' इत्यस्यासिद्ध: । अभेदैकान्तेपितद्वयं तद्वानेव वा भवेत् । कथंचित्तादात्म्ये-निश्चयानिश्चयस्वरूपसाधारणमात्मानं प्रतिपद्यते
कहते हैं । इन चित्त और चैत्तों का संवेदन होना-अनुभव में आना स्वसंवेदन प्रत्यक्ष कहलाता है। ये ज्ञान अपने स्वरूप में निर्विकल्प होते हैं, ऐसा इस वाक्य से सिद्ध होता है । अतः निश्चायक होने से विकल्प बलवान है ऐसा कहना सिद्ध नहीं हुग्रा । यदि दूसरा पक्ष कहो तो वह विकल्प ज्ञान अर्थ में निश्चयात्मक है तो भी ठीक नहीं है क्योंकि फिर उस विकल्प में निश्चय और अनिश्चय, यह दो स्वभाव मानने पड़ेंगे, अर्थात् विकल्प, स्वरूप का तो अनिश्चायक है और अर्थ का निश्चायक है ऐसे दो स्वभाव उसमें मानने होंगे। तथा वे दोनों स्वभाव और खुद विकल्प, इनका परस्पर में भेद रहेगा या अभेद ? भिन्न-पना मानें तो आपके यहां समवायादि सम्बन्ध स्वीकार नहीं किया है, अतः उन भिन्न स्वभावों का सम्बन्ध उसके साथ किससे होगा ? फिर "विकल्प बलवान है निश्चय स्वरूप होने से" इस अनुमान की बात कहां रही ? यदि उन निश्चय और अनिश्चय स्वभावों का विकल्प में अभेद माना जाय तो या तो वे दो स्वभाव ही रहेंगे या वह विकल्प ही रहेगा। विकल्प का स्वभावों के साथ तादात्म्य है अर्थात् विकल्प निश्चय और अनिश्चय स्वरूप को समान रूप से अपने में धारण करता है ऐसा कहो तो वह विकल्प स्वरूप में भी विकल्पात्मक हो गया सो ऐसी बात सिद्धांत के विरुद्ध पड़ती है क्योंकि बौद्धों ने विकल्प को स्वरूप की अपेक्षा निर्विकल्प माना है । अन्यथा निश्चय स्वरूप के साथ विकल्प का तादात्म्य नहीं बनता है । तथा यह बात भी है कि स्वरूप का निश्चय किये बिना वह विकल्प अर्थ का निश्चय भी नहीं करा सकता है, नहीं तो फिर अपने स्वरूप को ग्रहण किये बिना भी ज्ञान, पदार्थ को ग्रहण करने लगेगा। अप्रत्यक्ष अर्थात् अत्यन्त परोक्ष ज्ञान के द्वारा अर्थ का ग्रहण नहीं होता ऐसा आपके यहां भी माना है, उसमें विरोध पायेगा क्योंकि यहां विकल्प को उस रूप मान रहे हो ।
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