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प्रमेयकमलमार्तण्डे
को चखेंगी; कान देखने लग जायेंगे ? समझ में नहीं आता कैसा अतिशय है, तथा च-इन्द्रियां वर्तमान काल के पदार्थों को ही जानती हैं फिर उनके द्वारा तीन काल में होने वाले पदार्थों का ज्ञान कैसे होगा, बिना त्रिकालवर्ती पदार्थ को जाने सर्वज्ञता बनती नहीं, इस प्रकार सन्निकर्ष को प्रमाण मानने में सर्वज्ञता का अभाव होता है नेत्र और मन में भी सन्निकर्ष की अव्याप्ति है । अत: सन्निकर्ष प्रमाण नहीं कहा जा सकता है।
* सन्निकर्षवाद का सारांश समाप्त *
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