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त्रिलोकप्राप्तिकी अन्य ग्रन्थोंसे तुलना
(६१) आगे गा. २६६ तक ऊप्रलोक, इन तीनों से प्रत्येकके निम्न आठ आठ भेद बतलाये हैं१ सामान्य, २-३ दो चतुरस्र, ४ यवमुरज, ५ यवमध्य, ६ मन्दर, ७ दूष्य, और ८ गिरिकटक । परन्तु यहाँ त्रिलोकसारमें गा. ११५-११७ द्वारा केवल अधोलोकके ही उपर्युक्त आठ भेद बतलाये गये हैं । गा. ११८-१२० में ऊर्ध्वोकके निम्न पांच भेद बतलाये हैं जो तिलोयपण्णत्तिसे भिन्न हैं-- १ सामान्य, २ प्रत्येक, ३ अर्ब, ४ स्तम्भ और ५ पिनष्टि ।
(२) तिलोयपण्णत्तिमें बसनालीकी उंचाई तेरह राजुसे कुछ ( ३२१६२२४१३ धनुष ) कम बताई गई है। परन्तु यहाँ उसे पूर्ण चौदह राजु ऊंची ही बतलाया
लोयबहुमज्झदेसे रुक्खे सार व्व रज्जुपदरजुद।।
चौदसरज्जुत्तंगा तसणाली होदि गुणणाम || त्रि. सा. १४३. (३) तिलोयपण्णति ( २,३४७-४९) में जिन १५ असुरकुमार जातिके देवोंके नामोंका निर्देश किया है वे यहां नहीं पाये जाते। यहां केवल गा. १९७ में असुरकृत वेदनाका ही सामान्यतया उल्लेख किया गया है।
(४) तिलोयपण्णत्ति (२,२९२ ) में सातवीं पृथिवीसे निकलकर तियचोंमें उत्पन्न होनेवाले जीवोंके सम्यग्दर्शन प्राप्तिकी योग्यता बताई गई है। परन्तु यहां उसका 'मिस्सतियं पत्थि णियमेण' (गा. २०४ ) द्वारा स्पष्टतया निषेध किया गया है। इत्यादि । गाथाओंकी समानतालोगो अकिट्टिमो ख्लु अगाइ-णिहणो सहावणिव्वत्तो। जीवाजीवहि फुढो सव्वागासवयवो णिच्चो । धमाधम्मागासा गदिरागदि जीव-पोग्गलाणं च । जावत्तावलोगो आयासमदो परमणतं ॥ उभियदलेक्कमुरवद्धयसंचयसणिहो हवे लोगो । अधुदयो मुरवसमो चोदसरज्जूदओ सम्वो ॥
त्रि. सा. ४-६. आदि-णिहणेण होणो पगदिसरूवेण एस संजादो । जीवाजीवसमिद्धो सव्वाहावलोइओ लोओ ॥ धम्माधम्मणिबद्धा गदिरागदि जीव-पोग्गलाणं च । जेत्तियमेत्तायासे लोयायासो स णादब्वो॥ हेट्ठिमलायायारो वेत्तासणसण्णिहो सहावेण । मज्झिमलोयायारो उब्भियमुरअद्धसारिच्छो॥
ति. प. १ गा. १३३, १३४, १३७. ये गाथायें मूलाचार ( द्वादशानुप्रेक्षाधिकार गा. २२-२४ ) में भी पायी जाती हैं।
ति.प.२-८.
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