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[ति. प. पृ.१०३५-३६]
बीस प्ररूपणा
स्थान
जी. स. | पर्याप्ति
गुणस्थान
प्राण
संज्ञा| गति | इन्द्रिय | काय
योग
वेद
कषाय |
ज्ञान
संघम |
लेश्या
दर्शन
भव्य सम्यक्त्व | संज्ञी | आहार
उपयोग
नारक
आदिके ४
| पर्याप्त पर्याप्ति नि.अपर्याप्त अप.६
१०
६ | संज्ञी
४ | नरक |पंचेन्द्रिय | त्रस | ४ नपुंसक | ४
मन ४, ब.४ वै.२, कार्मण|
मतिआदि। असंयत | आदिके ३ | भावतः३ कृष्ण, भव्य अभ. अज्ञान ३
नील, कापोत, द्रव्यतः कृष्ण
आहारक | अनाहारक
कार
"
।
देव
"
" |
"
पुरुष,खा|
४
|
"
|
"
।
" |क्षायिक
कृष्णादि ३, पीत म.
"
मवनवासी ज.मि. अवि. २,
आदि ३. उ. १-४ |
|
| रहित ५
, |पयोप्तक १०,४
अप. के ७ मन बचनबा श्वासोच्छ्वाससे
रहित
भोगभूमिज
|
ना
| "
"
" पियाप्तक १०४
अप. के७]
। मनुण्य । तियंच
-
११ | मन ४, व.४ औ. २, कार्मण
" । ४ ।
अपर्याप्त मि. व सा.के | ३ अशुभ, अवि. के
| का. ज, प.के ३ शुभ | ४ | सभी | सभी | सभी | ६, अलेश्य अपगतवेद अकषाय
भी | भी
मनुष्य
|
प. १०, अप.७
४
| मनुष्य |
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|"
,१३. | वै. द्विकसे
रहित
" |
६ |
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" |
।
|
भरत व ऐरावत | पयात ज. १ मि., उ.१४ अपर्याप्त विदेह ज.१-६, उ.१४, म्लेच्छा वि. श्रे. ज.१,४ ५, उ.१-५, छडितविद्या १४.
तिर्यच
"
|
" |
१०
४
|तियच । सभी ।
६
.११
।
३
|
४ | ३ज्ञान, ३अ. असंयत,
संयतासंयत
'आदिके ३ |
६ । संझी
|
| असंही ।
" |
"
म.ऐ. ज. १, उ. १-५: विदेहादि ज. |१,४,५: उ.१-५ भो. ज. १,४,
उ. १.४. | म्ले. ख. १ मि.
आ.द्वि. से
रहित
वैमानिक
१-४
"
|
प.१०, | ४ | अप. ७
देव
पंचन्द्रिय
| पर्याप्त नि. अप.
त्रस | ओ.द्वि. पुरुष, खी|
व आ.द्वि.से|
४
|
"
असंयत
संशी |
सौ. यु. पीत. म, | अ. तक | अ. तक ६, | स.यु.पीत उ., पदम भव्य अम.,आगे उप., ज.; ब्रह्मादि ६ में पदम आगे भव्य वेदक व म. श. यु. पदम उ. |क्षा.३ शुक्ल ज.; आगे }. तक शुक्ल म.; शेष १४ में शुक्ल. उ.
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ज= जघन्य, उ- उस्कृष्ट, वि. श्रे. = विद्याधर-श्रेणि, यु= युगल, म= मध्यम.