SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 573
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तिलोयपणत्ती ४-५२४, ८-१५ मणिकांचन ६-१७माणिक्ट पंचशेक नगर १-१५/प्राणत पाण्दु १.६७,४-१८०६ प्रीतिकर पादुक प्रासाद ४-१८५१ पाण्डुकम्बला ४-१८३० फेममालिनी पातु शिला ४-1010 मणिप्रभ पाचानमर पाषाण ४-२५०८ बडवामुख १-२२ बलभद्र २-१८ बलभद्र कूट 6-१३ बहुकेतु २-४७ बहुमुख ४-११२,८-९३/बहल ४-२३४४ बालुप्रभा ४-२२९४ ब्रह्म ४-६७९ ब्रह्महृदय ५-११६ ब्रह्मोत्तर - पिपासा पुण्डरीक पुण्डरीक द्रह पुष्परीकिणी पुरिमतालवन ५-१२३ ५-१२५ ४-१२३ ४-२२१५ २-४१, १२३ ५-२६ ८-९१ ४-६५९ ८-१२ २-१९ ४-२२०६ २-५३ ४-२२१६ मणिवन मत्तजला ४-२४१० ममक ८-१४ मनःशिल ४-१९७८, १९९७ मनोहर मनोहर उद्यान ४-११४ मरुत् २-१७ महदुःखा १-१५२ महाकच्छा -१५ महाकाल ८-१५ महाकांक्षा ८-१५,१५९ महाकूट महाश्वाल पुरोत्तम ४-१२२ पुष्करवर पुष्कला ५-१२०६ महिल ४-५३५ महातमःप्रभा २-५० पुष्कलावती पुष्पक भद्र ८-९३/महानिकोष पुष्पचूल पुष्पवन २-५२ ६-१७२७ ५-२२०० पुष्पोत्तर पूर्णकूट पूर्णभद्र पृष्ठक प्रकीर्णक प्रज्वलित प्रतिसीतादाकुण्ड ४-२२० ८-१ भद्रशाल ४-११ भद्राश्व ४-६५ भरत ४-५२ भरत कूट भुजगवर ४-२०६१ भूतरमण ८-१५ भूतवर २-३६ भूतहित २-४३, १३७ भूतारण्य भूमितिलक भूषणशाला मुंगनिभा ४-२२९७ भुंगा महानिंग ४-१८०५ महानील महापद्म महापद्मा ४-१४७, १६३२ महापंक ४-१८०५ महापुण्डरीक ५-२३ महापुरी ८-९५ महाप्रभ ४-२२०३ महारौरव ४-१२२ महावत्सा ३-५८ महावप्रा ४-१९६२ महाविदेह ४-१९६२ महाविद्य २-४५, १४९ महाविमर्दन ४-२३६० ४-२२९९ ५-१२२ प्रम प्रमंकर ४-२२०० ४-२२०९ १-१७७५ प्रमकरा प्रभंजन कूट प्रभासतीर्थ प्रभासद्वीप १-२७१८ भ्रमक ४-२६४ भ्रान्त २-४०, महावेदा ४-२२५४३ २-१६ मघवी महाशंख १-१५३ महाशुक्र -२२१० 1-180,४-५२५, प्रभाकर -२०६७ मटंग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy