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-८.४११] अट्ठमो महाधियारो
[८२७ भाभरणा पुब्वावरविदेहतित्थयरबालयाणं च । थंभोवरि चेटुंते भवणेसु सणक्कुमारजुगलस्स ॥ ४०४ सयलिंदमंदिराणं पुरदो णग्गोहपायवा होति । एक्केक्कं पुढविमया पुचोदिदजंबुदुमसरिसा ॥ ४०५ तम्मले एक्केक्का जिणिंदपडिमा य पडिदिसं होदि । सक्कादिणमिदचलणा सुमरणमेत्ते वि दुरिदहरा॥ सक्कस्स मंदिरादो ईसाणदिसे सुधम्मणामसभा । तिसहस्सकोसउदया चउसयदीहा तदद्धवित्थारा ॥
३०००। ४०० । २०० तीए दुवारछेहो कोसा चउसहि तद्दलं रुंदो । सेपाओ वणणाओ सक्कप्पासादसरिसाओ॥ ४.८
६४ । ३२ । रम्माए सुधम्माए विविहविणोदेहि कीडदे सक्को । बहुविहपरिवारजुदो भुंजतो विविहसोक्खाणि ॥ ४.. तस्थेसाणदिसाए उववादसभा हुवेदि पुवसमा । दिप्पतरयणसेजा विष्णासविसेससोहिल्ला ॥ ४१० तीए दिसाए चेदि वररयणमओ जिणिंदपासादो । पुब्वसरिच्छो अहवा पंडुगजिणभवणसारिच्छो ॥ ४११
सानत्कुमार युगलके भवनोंमें स्तम्भोंके ऊपर पूर्व व पश्चिम विदेह सम्बन्धी तीर्थकर बालकोंके आभरण स्थित होते हैं ॥ ४०४ ॥
समस्त इन्द्रमन्दिरोंके आगे न्यग्रोध वृक्ष होते हैं। इनमें एक एक वृक्ष पृथिवी स्वरूप और पूर्वोक्त जम्बू वृक्षके सदृश होते हैं ॥ ४०५॥
इनके मूलमें प्रत्येक दिशामें एक एक जिनेन्द्रप्रतिमा होती है जिसके चरणों में शक्रादिक प्रणाम करते हैं तथा जो स्मरण मात्र ही पापको हरनेवाली है ॥ ४०६ ॥
___ सौधर्म इन्द्रके मन्दिरसे ईशान दिशामें तीन हजार ( तीन सौ ) कोश ऊंची, चार सौ कोश लंबी, और इससे आधे विस्तारवाली सुधर्मा नामक सभा है ॥ ४०७ ॥
उ. ३०००, दी. ४००, वि. २०० कोस ।। सुधर्मा सभाके द्वारोंकी उंचाई चौसठ कोश और विस्तार इससे आधा है। शेष वर्णन सौधर्म इन्द्रके प्रासादके सदृश है ।। ४०८ ॥ उत्सेध ६४, विस्तार ३२ कोश ।
इस रमणीय सुधर्मा सभामें बहुत प्रकारके परिवारसे युक्त सौधर्म इन्द्र विविध सुखोंको भोगता हुआ अनेक विनोंदोंसे क्रीड़ा करता है ॥ ४०९ ॥
वहां ईशान दिशामें पूर्वके समान उपपाद सभा है। यह सभा दैदीप्यमान रत्नशम्याओंसे सहित और विन्यासविशेषसे शोभायमान है ॥ ४१० ॥
उसी दिशामें पूर्वके समान अथवा पाण्डुक वन सम्बन्धी जिनभवनके सदृश उत्तम रत्नमय जिनेन्द्रप्रासाद है ॥ ४११ ।।
१९ व तिप्पति.
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