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८२०) तिलोयपण्णत्ती
[८. ३५३तेसुं तडवेदीओ कणयमया होति विविहधयमाला ! चरियथालयचारू वरतारगसुंदरदुवारा ॥ ३५३ दारोवरिमतलेसुं जिणभवणेहिं विचित्तरूवेहिं । उत्तुंगतोरणेहिं सविसेस सोहमाणाओ ॥ ३५४ एवं पवणिदाणं सेढीण होति ताण बहुमज्झे । णियणियणामजुदाई सक्कप्पहुदीण णयराइं ॥ ३५५ चुलसीदीओ सीदी बाहत्तरिसत्तरीओ सट्ठी य । पण्णासचालतीसा वीस सहस्साणि जोयणया ॥ ३५६ ८४०००।८००००। ७२०००। ७००००। ६००००। ५०००० । ४०००० । ३०००० । २०००० । सोहम्मिदादीणं असुरिंदाग सेसइंदाणं । रायंगणस्त वासो पत्तेकं एस णादवो ॥ ३५७ रायंगणभूमीए समंतदो दिव्वकणयतडवेदी । चरियथालयचारू णचंतविचित्तधयमाला ॥ ३५८ सकदुगे तिषिणसया अट्ठाइज्जासयाणि उवरिदुगे । बम्हिदे दोणिसया आदिमपायार उच्छेहो ॥ ३५९
३०० । २५० । २००।
उनमें मार्ग व अट्टालिकाओंसे सुन्दर, उत्तम तोरणोंसे युक्त सुन्दर द्वारोंवाली, और विविध प्रकारकी ध्वजासमूहोंसे युक्त सुवर्णमय तटवेदियां हैं ॥ ३५३ ॥
द्वारोंके उपरिम तलोंपर उन्नत तोरणोंसे सहित और विचित्र रूपवाले ऐसे जिनभवनोंसे वे वेदियां विशेष शोभायमान हैं ॥ ३५४ ॥
इस प्रकार वर्णित उन श्रेणियोंके बहुमध्य भागमें अपने अपने नामसे युक्त सौधर्म इन्द्र आदिके नगर हैं ॥ ३५५॥
चौरासी हजार, अस्सी हजार, बहत्तर हजार, सत्तर हजार, साठ हजार, पचास हजार, चालीस हजार, तीस हजार और बीस हजार योजन; यह सौधर्मादि आठ सुरेन्द्र और शेष इन्द्रों से प्रत्येकके राजांगणका विस्तार जानना चाहिये ॥ ३५६-३५७ ॥
सौ. ८१०००, ई. ८००००, सान. ७२०००, मा. ७००००, ब्र. ६.०००, लां. ५००००, म. ४००००, सह. ३००००, आनतादिक चार २००००।
राजांगण भूमिके चारों ओर दिव्य सुवर्णमय तटवेदी है । यह वेदी मार्ग व अट्टालिकाओंसे सुन्दर तथा नाचती हुई विचित्र ध्वजापंक्तियोंसे युक्त है ॥ ३५८ ॥
शक्रद्विक अर्थात् सौधर्म और ईशान इन्द्रके आदिम प्राकारका उत्सेध तीन सौ, उपरिद्विक अर्थात् सानत्कुमार और माहेन्द्रके आदिम प्राकारका उत्सेध अढ़ाई सौ तथा ब्रह्मेन्द्रके भादिम प्राकारका उत्सेध दो सौ योजन है ॥ ३५९ ॥
सौ. ई. ३००, सान. मा. २५०, ब्र. २००।
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