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७८८] तिलोयपण्णत्ती
[८.१२७सोहम्मो ईसाणो सणक्कुमारो तहेव माहिंदो । बम्हा बम्हुत्तरयं लंतवकापिट्ठसुक्कमहसुक्का ॥ १२७ सदरसहस्साराणदपाणदआरणयअच्चुदाणामा । इय सोलस कप्पाणिं मण्णंते केइ आइरिया ॥ १२८
पाठान्तरम् । । एवं णामपरूवणा समत्ता । कणयदिचूलउवरिं किंचूणदिवट्ठरज्जुबहलम्मि । सोहम्मीसाणक्खं कप्पदुर्ग होदि रमणिज्जं ॥ १२९
कणस्स य परिमाणं चालजुदं जोयणाणि इगिलक्खं । उत्तरकुरुमणुवाणं बालग्गेणादिरित्तेणं ॥ १३०
१००.४० । सोहम्मीसाणाणं चरमिंदयकेदुदंडसिहरादो । उट्टे असंखकोडीजोयणविरहिददिवट्ठरज्जूए ॥ १३१ चिटेदि कप्पजुगलं णामेहि सणक्कुमारमाहिंदा । तच्चरिमिंदयकेदणदंडाइ असंखजोयणूणेणं || १३२ रज्जूए अद्वेणं कप्पो चेटेदि तत्थ बम्हक्खो। तम्मेत्ते पत्तेक्कं लंतवमहसुक्कया सहस्सारो ॥ १३३ भाणदपाणदभारणअच्चुअकप्पा हुवंति उवरुवरि । तत्तो असंखजायणकोडीओ उवरि अंतरिदा ॥ १३४
सौधर्म, ईशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लांतव, कापिष्ट, शुक्र, महाशुक्र, शतार, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, और अच्युत नामक, ये सोलह कल्प हैं, ऐसा कोई आचार्य मानते हैं ॥ १२७-१२८ ॥
पाठन्तर। ___ इस प्रकार नामप्ररूपणा समाप्त हुई । कनकाद्रि अर्थात् मेरु पर्वतकी चूलिकाके ऊपर कुछ कम डेढ़ राजुके बाहल्यमें रमणीय सौधर्म-ईशान नामक कल्पयुगल है ॥ १२९ ॥ रा. १३ ।
इस ऊनताका प्रमाण उत्तर कुरुके मनुष्योंके बालाग्रसे अधिक एक लाख चालीस योजन है ॥ १३० ॥ १०००४० ।
सौधर्म-ईशान सम्बन्धी अन्तिम इन्द्रकके ध्वजदण्डके शिखरसे ऊपर असंख्यात करोड़ योजनोंसे रहित डेढ़ राजुमें सानत्कुमार-महेन्द्र नामक कल्पयुगल स्थित है। इसके अन्तिम इन्द्रक सम्बन्धी ध्वजदण्डके ऊपर असंख्यात योजनोंसे कम आधे राजुमें ब्रह्म नामक कल्प स्थित है। इसके आगे इतने मात्र अर्थात् आधे आधे राजुमें ऊपर ऊपर लांतव, महाशुक्र, सहनार, आनत-प्राणत और आरण-अच्युत कल्पोंमेंसे प्रत्येक है । इसके आगे असंख्यात करोड़ योजनोंके
१दब आरणया अचुदा. २ कप्पम, ३दब १४३, ४दब सुक्कयसहस्सारो,
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