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________________ ७८०] तिलोयपण्णत्ती [ ८.६९णवजोयणलक्खाणि इगिवण्णसहस्स छसय अंककमे । बारुत्तरमारणए' अट्ठावीस कलामो णादम्वा ॥ ६९ ९५१६१२ /२, अर्ट चिय लक्खाणिं सीदिसहस्साणि छस्सयाणि च । पणदालजोयणाणि पंचकला अच्चुदे रुंदं ॥ ७० भर्ट चिय लक्खाणि णव य सहस्साणि छस्सयाणि च । सत्तत्तरि जायणया तेरसअंसा सुदंसणए ॥ ७१ णवजोयण सत्तसया अडतीससहस्स' सत्तलक्खाणि । इगिवीस कला रुंदं अमोघणामम्मि इंदए होदि ॥ ७२ इगिदालुत्तरसगसय सत्तट्टिसहस्सजोयण छलक्खा । उणतीसकला कहिदो वित्थारो सुप्पबुद्धस्स ॥ ७३ चउहत्तरिजुदसगसय छण्णउदिसहस्स पंचलक्खाणि । जोयणया छच्च कला जसहरणामस्स विक्खंभो ॥ ५९६७७४।६। आरण इन्द्रकके विस्तारका प्रमाण अंकक्रमसे नौ लाख इक्यावन हजार छह सौ बारह योजन और अट्ठाईस कला जानना चाहिये ॥ ६९ ॥ ९५१६१२३६ । . अच्युत इन्द्रकका विस्तार आठ लाख अस्सी हजार छह सौ पैंतालीस योजन और पांच कला अधिक है ॥ ७० ॥ ८८०६४५३। __सुदर्शन इन्द्रकका विस्तार आठ लाख नौ हजार छह सौ सतहत्तर योजन और तेरह भाग अधिक है ।। ७१ ॥ ८०९६७७ ३३। अमोघ नामक इन्द्रकका विस्तार सात लाख अड़तीस हजार सात सौ नौ योजन और इक्कीस कला अधिक है ॥ ७२ ॥ ७३८७०९३१ । सुप्रबुद्ध इन्द्रकका विस्तार छह लाख सड़सठ हजार सात सौ इकतालीस योजन और उनतीस कला अधिक कहा गया है । ७३ ॥ ६६७७४१३६। यशोधर नामक इन्द्रकका विस्तार पांच लाख छ्यानबे हजार सात सौ चौहत्तर योजन और छह कला अधिक है ।। ७४ ॥ ५९६७७४६ । १ द वे उत्तरमारणओ, ब वास्तरं आरणओ. २ द ब उस्सयाण. ३ द ब असीदिसहस्स. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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