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________________ -७. ५८८] सत्तमो महाधियारो برای t बावीससहस्साणि बेसयामिवीस जोयणा भंसा । दोणिसया उणदालं हारी उणवणपंचसया ॥ ५८३ एवं अंतरमाणं एक्केकरवीण पोक्खरद्धम्मि । लेस्सागदी तदद्धं तस्सरिसा उदधिभावाहा ॥ ५८४ ताओ आबाधाओ दोसुं पासेसु संठिदरवीणं । चारक्खेत्तेगहिया' अभंतरए बहिं ऊणा ॥ ५८५ जंबूयंके दोपहं लेस्सा वञ्चति चरिममग्मादो । अभंतरए णभतियतियसुपणा पंच जोयणया ॥ ५८६ ५०३३०॥ चरिमपहादो बाहिं लवणे दोणभदुतितियजोयणया। वञ्चइ लेस्सा अंसा सयं च हारा तिसीदिनधियसया ॥ ___१३००२ | | पदमपहसंठियाणं लेस्सगदीण चदुअट्टणवचउरो । भंककमे जायणया तियतिय भागस्सेस पुहहाणिवडीओ। ३३५१३ : (१) बाईस हजार दो सौ इक्कीस योजन और पांच सौ उनचाससे भाजित दो सौ उनतालीस भाग, यह पुष्करार्द्ध द्वीपमें एक एक सूर्योका अन्तरालप्रमाण है । इससे आधी किरणोंकी गति और उसके बराबर ही समुद्रका अन्तर भी है ॥ ५८३-५८४ ॥ दो पार्श्वभागोंमें स्थित सूर्योके ये अन्तर अभ्यन्तरमें चारक्षेत्रसे अधिक और बाह्यमें चार क्षेत्रसे रहित हैं ॥ ५८५ ॥ जम्बूद्वीपमें अन्तिम मार्गसे अभ्यन्तरमें दोनों चन्द्र-सूर्योकी किरणें शून्य, तीन, तीन, शून्य और पांच अर्थात् पचास हजार तीन सौ तीस योजनप्रमाण जाती हैं ॥ ५८६॥ ५०३३० । लवण समुद्रमें अन्तिम पथसे बाह्यमें दो, शून्य दो, तीन और तीन अर्थात् तेतीस हजार दो योजन और एक सौ तेरासी भागोंमेंसे सौ भागप्रमाण किरणें जाती हैं ॥ ५८७ ॥ ३३००२१३३। प्रथम पथमें स्थित [ सूर्य-चन्द्रकी किरणगति ] अंककमसे चार, आठ, नौ और चार, इन अंकोंके प्रमाण अर्थात् चार हजार नौ सौ चौरासी योजन और तीन भाग अधिक है। शेष पथों में हानि-वृद्धि है (१) ॥ ५८८ ॥ .iALLAHARI १द पारखेसअहिया. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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