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________________ -७. ५७४ ] सतमा महाधियारो । ७५५ णियपहपरिहिपमाणे पुह पुह दुसदेक्कवीससंगुणिदे । तेरससहस्ससगसयपणुवीसहिदे मुहुत्तंगदिमाण ॥ २२१ । १३७२५ सेसाओ वण्णणाओ जंबूदीवाम्म जाओ चंदाणं । ताओ लवणे धादइसंडे कालोदपुक्खर सुं ॥ ५७० एवं चंदाणं परूवणा सम्मत्ता। चत्तारि होति लवणे बारस सूरा य धादईसंडे । बादाला कालोदे बावत्तरि पुक्खरम्मि ॥ ५७१ १२ । ४२ । ७२ । णियणियरवीण अद्धं दीवसमुदाण एक्कभागम्मि । भवरे भागे अद्धं चरति पंतिक्कमेणेव ॥ ५७२ एक्केक्कचारखेत्तं दोहों दुमगीण होदि तब्वासो। पंचसया दससहिदा दिवइबिबादिरित्ता य॥ ५७३ १।२।५१०/३०॥ एक्केकचारखेत्ते चउसीदिजुदसदेक्कवीहीओ। तब्वासो अब्दालं जायणया एक्कसहिहिदा ॥ ५७४ अपने अपने पथोंकी परिधि के प्रमाणको पृथक् पृथक् दो सौ इक्कीससे गुणा करनेपर जो प्रमाण प्राप्त हो उसमें तेरह हजार सात सौ पच्चीसका भाग देनेपर मुहूर्तकालपरिमित गतिका प्रमाण आता है ॥ ५६९ ॥ २३७३८ । लवण समुद्र, धातकीखण्ड, कालोद समुद्र और पुष्कराई द्वीपमें स्थित चन्द्रोंका शेष वर्णन जम्बूद्वीपके चन्द्रोंके समान जानना चाहिये ॥ ५७० ॥ इस प्रकार चन्द्रोंकी प्ररूपणा समाप्त हुई । लवण समुद्रमें चार, धातकीखण्डमें बारह, कालोद समुद्रमें ब्यालीस और पुष्करार्द्धमें बहत्तर सूर्य स्थित हैं ॥ ५७१ । ४ । १२ । ४२ । ७२ । अपने अपने सूर्योके आधे द्वीप-समुद्रोंके एक भागमें और आधे दूसरे भागमें पंक्तिक्रमसे संचार करते हैं ॥ ५७२ ॥ दो दो सूर्योका एक एक चारक्षेत्र होता है । इस चार क्षेत्रका विस्तार सूर्यबिम्बसे अतिरिक्त पांच सौ दश योजनप्रमाण है ॥ ५७३ ॥ ५१०६६। एक एक चार क्षेत्रमें एक सौ चौरासी वीथियां होती हैं । इनका विस्तार इकसठसे भाजित अड़तालीस योजन होता है ॥ ५७४ ॥ १८४४। १६ व मुहुते. २ चारखेने दो दो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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