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७५० तिलीयपण्णत्ती
। ७.५३४पइसाहकिण्हपक्खे' णवमीए धणिटणामगक्खत्ते । मादीदो अट्ठारस पन्वमदीदे दुइजयं उसुयं ॥ ५३८ कत्तियमासे पुण्णिमिदिवसे इगितीसपब्वमादीदो । तीदाए सादीए रिक्खे होदि हु तइजयं विसुयं ॥ ५३९ बहसाहसुकपक्खे छट्ठीए पुणग्वसुक्खणक्खत्ते । तेदालसंखपव्वमदीदेसु च उत्थयं विसुयं ॥ ५४० कत्तियमासे सुकिलबारसिए पंचवण्णपरिसंखे। पव्वमदीदे उसुयं पंचमयं होदि णियमेणं ५४१ बहसाहकिण्हपक्खे तदियाए [ अट्ठसहिपरिसंखे । पध्वमदीदे उसुपं ] छट्ठमयं होदि णियमेण ॥ ५४२ कसियमासे किण्हे णवमीदिवसे मघाए णक्खत्ते । सीदीपब्वमदीदे होदि पुढं सत्तमं उसुयं ॥ ५४३ बहसाहपुण्णमीए अस्मिणिरिक्खे जुगस्स पढमादो। तेणउदी पब्वेस वि होदि पुढं अट्टमं उसुयं ॥ ५५ कत्तियमासे सुक्कच्छट्टीए उत्तरादिभद्दपदे। पंचुत्तरएकसयं पवमदीदेसु णवमयं उसुयं ॥ ५४५
दूसरा विषुप वैशाख मासमें कृष्ण पक्षकी नवमीको धनिष्ठा नामक नक्षत्रके रहते आदिसे अठारह पर्वोके वीतनेपर होता है ।। ५३८ ॥
तीसरा विषुप कार्तिक मासकी पूर्णिमाके दिन आदिसे इकतीस पोंके वीत जानेपर स्वाति नक्षत्रके रहते होता है ॥ ५३९ ॥
चौथा विषुप वैशाख मासमें शुक्ल पक्षकी षष्ठी तिथिको पुनर्वसु नक्षत्रके रहते तेतालीस पोंके वीत जानेपर होता है ॥ ५४० ॥
पांचवां विषुप कार्तिक मासमें शुक्ल पक्षकी द्वादशीको पचवन पर्वोके व्यतीत होनेपर [उत्तरा भाद्रपदा नक्षत्रके रहते ] नियमसे होता है ॥ ५५१ ॥
छठा विषुप वैशाख मासमें कृष्ण पक्षकी तृतीयाके दिन [ अड़सठ पर्वोके वीत जानेपर अनुराधा नक्षत्रके रहते ] नियमसे होता है ॥ ५४२ ॥
___ सातवां विषुप कार्तिक मासमें कृष्ण पक्षकी नवमीके दिन मघा नक्षत्रके रहते अस्सी पर्वोके वीतनेपर होता है ॥ ५४३ ॥
आठवां विषुप वैशाख मासकी पूर्णिमाके दिन अश्विनी नक्षत्रके रहते युगकी आदिसे तेरानबै पर्वोके वीतनेपर होता है ॥ ५४४ ॥
नौवां विषुप कार्तिक मासमें शुक्ल पक्षकी षष्ठीको उत्तरा भाद्रपदा नक्षत्रके रहते एक सौ पांच पोके वीत चुकनेपर होता है ॥ ५४५॥
१६ वहसम्मि किन्हपक्से.
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