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________________ तिलोयपण्णत्ती [७.४७७भदिरेकस्स पमाणं तिषिण सयाणि हकति सत्त कला । तिसएहि सत्तसट्ठीसंजुत्तेहिं विभत्ताणि ॥ ४७७ सवणादिअट्ठभाणि अभिजिस्सादीओ उत्तरा धुव्वा! वच्चंति मुहुत्तेगं बावण्णसयाणि अधियपणसट्ठी ॥४७८ भधियप्पमाणमंसा अट्ठारसहस्सदुसयतेसट्ठी । इगिवीससहस्साणि णवसयसट्ठी हवे हारो ॥ ४७९ वञ्चंति मुहुत्तेणं पुणव्वसुमघा तिसत्तदुगपंचा । अंककमे जोयणया तियणभचउएक्कएक्ककला ॥ ४८० बावण्णसया पणसीदिउत्सरा सत्तत्तीस अंसा य। चणउदिपणसयहिदा जादि मुहुत्तेण कित्तिया रिक्खा ॥ इस अतिरेकका प्रमाण तीन सौ सड़सठसे विभक्त तीन सौ सात कला है ॥ ४७७ ॥ समस्त ग. खण्ड १०९८००, १०९८०० ४ १ = १०९८००, १०९८०० * १८३५ = ५९१४३५ = ५९३६७ मुहूर्त । श्रवणादिक आठ, अभिजित् , स्वाति, उत्तरा और पूर्वा, ये नक्षत्र बावन सौ पैंसठ योजनसे अधिक एक मुहूर्तमें गमन करते हैं । यहां अधिकताका प्रमाण इक्कीस हजार नौ सौ साठ भागोंमेंसे अठारह हजार दो सौ तिरेसठ भागमात्र है ॥ ४७८-४७९ ॥ ५२६५३६२६३ । पुनर्वसु और मघा अंकक्रमसे तीन, सात, दो और पांच अर्थात् पांच हजार दो सौ तिहत्तर योजन और ग्यारह हजार चार सौ तीन भाग अधिक एक मुहूर्तमें गमन करते हैं ।। ४८० ॥ ५२७३३ १४६३ । - कृत्तिका नक्षत्र एक मुहूर्तमें बावनसौ पचासी योजन और पांचसौ चौरानबैसे भाजित सैंतीस भाग अधिक गमन करता है । ॥ ४८१ ॥ ५२८५५३६४ । १दब पुवाउ. २द ब चउणउदीपणयहिदा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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