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________________ -७. ४१८] सत्तमो महाधियारो [७२९ • पढमपहादो बाहिरपदम्मि दिवसाहिवस्स गमणेसु । वढुति तिमिरखेत्ता आगमणेसुं च परियति ॥ ४१४ एवं सध्यपहेसुं भणियं तिमिरक्खिदीण परिमाणं । एत्तो आदवतिमिरक्खेत्तफलाई परूवमो ॥ ४१५ लवणंबुरासिवासच्छट्ठमभागस्स परिहिबारसमे । पणलक्खेहिं गुणिदे तिमिरादवखेत्तफलमाणं ॥ ११ चउठाणेसुं सुण्णा पंचदुणभछक्कणवयएक्कदुगा । अंककमे जोयणया तं खेत्तफलस्स परिमाणं ॥ ४१७ २१९६०२५००००। एदे तिगुणिय भजिदं दसेहि एक्कादवक्खिदीय फलं । तेत्तिय दुतिभागहदं होदि फलं एक्कतमखेत्तं ॥४१४ ६५८८०७५००० । ति ४३९२०५०००० । दिवसाधिप अर्थात् सूर्य के प्रथम पथसे बाह्य पथकी ओर गमन करनेमें तिमिरक्षेत्र वृद्धिको और आगमनकालमें हानिको प्राप्त होते हैं ॥ ११४ ॥ इस प्रकार सब पथोंमें तिमिरक्षेत्रोंके प्रमाणको कह दिया है । अब यहांसे आगे आतप और तिमिरके क्षेत्रफलको कहते हैं ॥ ४१५॥ लवण समुद्रके विस्तारके छठे भागकी जो परिधि हो उसके बारहवें भागको पांच लाखसे गुणा करनेपर तिमिर और आतपक्षेत्रका क्षेत्रफलप्रमाण आता है ॥ ४१६ ॥ लवण समुद्रका वि. यो. २०००००; २००००० * ६ = ३३३३३३, दोनों ओरके प्रमाणके लिये इसे दुगुणा करनेपर ६६६६६६; जम्बूद्वीपका विस्तार १०००००; १००००० + ६६६६६५ = १६६६६६६, इसकी परिधि 'विक्खंभवग्गदहगुणकरणी' इस करणसूत्रके अनुसार ५२७०४६ : १२ = १३९२०३, ४३९२० x ५ लाख = २१९६०२५०००० ति. व आ. क्षेत्रफल । __ चार स्थानोंमें शून्य, पांच, दो, शून्य, छह, नौ, एक और दो, इन अंकोंके क्रमसे उस क्षेत्रफलका प्रमाण इक्कीस सौ छ्यानबै करोड़ दो लाख पचास हजार योजनमात्र होता है ॥ ४१७ ॥ २१९६०२५०००० । इसको तिगुणा करके दशका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतना एक आतपक्षेत्रका क्षेत्रफल और इस आतपक्षेत्रफल प्रमाणके तीन भागोंमेंसे दो भागमात्र एक तमक्षेत्रका क्षेत्रफल होता है ।। ४१८ ॥ २१९६०२५०००० x ३ = ६५८८०७५००००; ६५८८०७५०००० १० = ६५८८०७५००० एक आतप क्षेत्रफल ।। . आतप. क्षे. फ. ६५८८०७५००० ४३ = ४३९२०५०००० एक तमक्षेत्रफल । . TP. 92 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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