SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 321
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७१८ तिलोयपण्णत्ती ७. ३५७ तेसद्विसहस्साणिं छस्सय बासटि जायणाणि कला । चत्तारो बहिमगहिदम्मि तवणम्मि बहिपहे ताओ। ६३६६२/६ एक्कं लक्खं णवजुदचउवण्णसयाणि जोयणा अंसो । बाहिरपट्टिदक्के तावखिदी लवणछटुंसे ॥ ३५८ भादिमपहादु बाहिरपहम्मि भाणुस्स गमणकालम्मि । हाएदि किरणसत्ती ववदि यागमणकालम्मि ॥३५९ सावक्खिदिपरिधीए ताओ एक्ककमलणाहम्मि । दुगुगिदपरिमाणामओ सहस्पकिरणेसु दोपहंमिम ॥ ३६० । तावखिदिपरिही सम्मत्ता । सवासुं परिहीसुं पढमपहट्ठिदसहस्सकिरणम्मि । बारसमुहुत्तमेत्ता पुह पुह उप्पजदे रत्ती ॥ ३६१ इच्छिदपरिहिपमाणं पंचविदत्तम्मि होदि जं लद्धं । सा तिमिरखेत्तपरिही पढमपहदिदिणेसम्मि ॥ ३६२ ........... — सूर्यके बाह्य मार्गमें स्थित होनेपर बाह्य पंथमें तापक्षेत्र तिरेसठ हजार छह सौ बासठ योजन और चार कलाप्रमाण रहता है ॥ ३५७ ॥ ६३६६२६ । सूर्यके बाह्य पथमें स्थित होनेपर लवण समुद्रके छठे भागमें तापक्षेत्र एक लाख चौवन सौ नौ योजन और एक भागमात्र रहता है ॥ ३५८ ॥ १०५४०९। आदि पथसे बाह्य पथकी ओर जाते समय सूर्य की किरणशक्ति हीन होती है और बाह्य पथले आदि पथकी ओर वापिस आते समय वह किरणशक्ति वृद्धिंगत होती है ॥ ३५९॥ एक सूर्यके रहते तापक्षेत्रपरिधिमें जितने प्रमाण ताप रहता है उससे दुगुणे प्रमाण वह दो सूर्योके रहनेपर होता है ॥ ३६० ॥ तापक्षेत्रपरिधिका कथन समाप्त हुआ । सूर्यके प्रथम पथमें स्थित रहनेपर पृथक् पृथक् सब परिधियोंमें बारह मुहूर्तप्रमाण रात्रि होती है ॥ ३६१ ॥ इच्छित परिधिप्रमाणको पांचसे विभक्त करनेपर जो लब्ध आवे उतना सूर्यके प्रथम पथमें स्थित होनेपर तिमिरक्षेत्रपरिधिका प्रमाण होता है ॥ ३६२ ॥ इच्छित मेरुपरिधि ३१६२२ * ५ = ६३२३२ मेरुके ऊपर ति. क्षे. प्रमाण । १द परिहिदीए, २ एषा गाथा व पुस्तके नास्ति. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy