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________________ ७१६ ] तिलोयपण्णत्ती [ ७. ३४७ तिवद्वतिया जंककमे सत्त दोणि अंसा य । चालविहत्ता ताभो खेमपुरे बहिपहट्ठिदक्कम्मि || ३४७ २७ ३८९८३ | | ४० एक्कतालसहस्सा णवसयचालीस जोयणा भागा। पणतीसं रिट्ठाए तावो' बाहिरपट्टिदक्कम्मि ॥ ३४८ || पंचत्तालसहस्सा बाहत्तरि तिसय जोयणा अंसा । सत्तरस अरिट्ठपुरे तावो बाहिरपट्टिदक्कम्मि ॥ ३४९ १७ || ४१९४० ४५३७२ भट्टत्तालसहस्सा तिसया उणतीस जोयणा सा । पणुवीसा खग्गोवरि तावो बाहिरपट्टिदक्कम्मि ॥ ३५० R कणसहसा सत्तसया एक्कसट्ठि जोयणया । सत्तंसा बाहिरपहठिदसूरे मंजुसे ताभो ॥ ३५१ । । ४० ४८३२९ सूर्यके बाह्य पथमें स्थित होनेपर क्षेमपुर में तापक्षेत्र तीन, आठ, नौ, आठ, और तीन, इन अंकों के क्रमसे अड़तीस हजार नौ सौ तेरासी योजन और चालीससे विभक्त सत्ताईस भागप्रमाण रहता है || ३४७ ॥ ३८९८३४७ । ५१७६१ सूर्यके बाह्य पथमें स्थित होनेपर अरिष्टा नगरीमें तापक्षेत्र इकतालीस हजार नौ सौ चालीस योजन और पैंतीस भागप्रमाण रहता है ।। ३४८ ॥ ४१९४० । सूर्य बाह्य पथमें स्थित होनेपर अरिष्टपुर में तापक्षेत्र पैंतालीस हजार तीन सौ बहत्तर योजन और सत्तरह भागप्रमाण रहता है ॥ ३४९ ॥। ४५३७२÷७ । Jain Education International सूर्यके बाह्य पथमें स्थित होनेपर खड्गानगरीके ऊपर तापक्षेत्र अड़तालीस हजार तीन सौ उनतीस योजन और पच्चीस भागप्रमाण रहता है || ३५० || ४८३२९१५ । १ द ताहो. सूर्य बाह्य पथमें स्थित होनेपर मंजूषा नगरी में तापक्षेत्र इक्यावन हजार सात सौ इकसठ योजन और सात भागप्रमाण रहता है || ३५१ ॥ ५१७६१ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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