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________________ ७०४] तिलोयपण्णत्ती [ ७. २८६बारस मुहुत्तयाणि छक्ककलाओ वि रत्तिपरिमाणं । तुरिमपहद्विदपफयबंधवबिंबम्मि परिहीसुं ॥ २८६ एवं मजिसमपहंतं णेदव्वं । पण्णरसमहुत्ताई पत्तेय होंति दिवसरत्तीओ । पुब्बोदिदपरिहीसुं मज्झिममग्गढ़िदे तवणे ॥ २८७ - एवं दुचरिममग्गंतं णेदव्वं । भट्टरसमुहुत्ताणिं रत्ती बारस दिगो वि दिणगाहे । बाहिरमग्गपवणे पुढ्योदिदसधपरिहीसु ॥ २८८ १८।१२। बाहिरपहादु पत्ते मग्गं अभंतरं सहस्सकरे । पुवावण्णिदमेदं पक्खेवसु दिणप्पमाणम्मि ॥ २८९ इय बासररत्तीओ एक्कस्स रविस्स गदिविसेसेणं । एदाओ दुगुणाओ हुवंति दोण्हं दिणिंदाणं ॥ २९० । दिण-रत्तीणं भेदं सम्मत्तं । सूर्यबिम्बके चतुर्थ पथमें स्थित रहनेपर सब परिधियोंमें रात्रिका प्रमाण बारह मुहूर्त और छह कलामात्र होता है ॥ २८६ ॥ १२६ । इस प्रकार मध्यम पथ पर्यन्त ले जाना चाहिये । सूर्यके मध्यम पथमें स्थित रहनेपर पूर्वोक्त परिधियोंमें दिन-रात्रियोंमेंसे प्रत्येक पन्द्रह मुहूर्त प्रमाण होते हैं ॥ २८७ ॥ १५ । इस प्रकार द्विचरम ( १८३ ) मार्ग तक ले जाना चाहिये । सूर्यके बाह्य मार्गको प्राप्त होनेपर पूर्वोक्त सब परिधियोंमें अठारह मुहूर्त प्रमाण रात्रि और बारह मुहूर्त प्रमाण दिन होता है ॥ २८८ ॥ १८ । १२। __ सूर्यके बाह्य पथसे अभ्यन्तर मार्गको प्राप्त होनेपर पूर्ववर्णित क्रमसे दिनप्रमाणमें उत्तरोत्तर इस वृद्धिप्रमाणको मिलाना चाहिये ॥ २८९ ॥ ६२ । इस प्रकार एक सूर्यकी गतिविशेषसे उपर्युक्त प्रकार दिन-रात्रियां हुआ करती हैं । इनको दुगुणा करनेपर दोनों सूर्योकी गतिविशेषसे होनेवाली दिन-रात्रियोंका प्रमाण होता है ।। २९० ॥ दिन-रात्रियोंके भेदका कथन समाप्त हुआ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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