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६५८] तिलोयपण्णत्ती
[६.७चंदा दिवायरा गहणक्खत्ताणि पदण्णताराओ । पंचविहा जोदिगणा लोयंतघणोवहिं पुट्ठा ।। ७ णवरि विसेसो पुवावरदक्खिणउत्तरेसु भागेसुं । अंतरमत्थि त्ति' ण ते छिवंति जोइग्ग सो वाऊ || ८ पुच्वावरविच्चालं एक्कसहस्सं विहत्तरी धिया। जोयणया पत्तक्कै रुवस्सासंखभागपरिहीणं । ९
१०७२ । रिण | तहक्खिणुत्तरेसं रूवस्सासंखभागअधियाओ। बारसजायणहीणा पत्तेकं तिष्णि रज्जूओ॥१०
- ३ रिण जो १२ ।
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। भेदो सम्मत्तो। भजिदम्मि सेढिवग्गे बेसयछप्पण्णभंगुलकदीए । जं लद्धं सो रासी जोदिसिय सुराण सव्वाणं । ११
४ । ६५५३६ ।
चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारा, इस प्रकार ज्योतिषी देवों के समूह पांच प्रकार के हैं । ये ज्योतिषी देव लोकके अन्तमें धनोदधि वातवलयको छूते हैं ॥ ७ ॥
विशेष इतना है कि पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर भागोंमें अन्तर है। इसलिये वे ज्योतिषी देव उस घनोदधि वातवलयको नहीं छूते (?) ॥ ८ ॥
प्रत्येक दिशामें पूर्व-पश्चिम अन्तराल एक हजार बहत्तर योजन व रूपके असंख्यातवें भागसे हीन है ॥९॥
यो. १०७२ - असं.।
वह अन्तराल प्रत्येकके दक्षिण-उत्तर भागोंमें रूपके असंख्यातवें भागसे अधिक व बारह योजन कम तीन राजु प्रमाण है ॥ १० ॥
रा. ३ – यो. १२.१.
असं. ।
भेदका कथन समाप्त हुआ। दो सौ छप्पन अंगुलोंके वर्गका जगश्रेणीके वर्गमें भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतनी सम्पूर्ण ज्योतिषी देवोंकी राशि है ॥ ११ ॥ जगश्रेणी'’ ६५५३६ ।
२ ब अधियाओ.
३ द ब परिमाणं
४ द ब १.
१ द ब अंतरमस्थि त. ५दवसम्मत्तं.
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