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________________ ६०२ ] तिलोय पण्णत्ती [ ५.२८० पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तजगपदरं भवलियाए असंखेज्जदिभागेण गुणिदपदरंगुलेहि भागे हिदे पुढविकाइयबादरपज्जत्तरासिपमाणं होदि =1 तम्मि आवलिया असंखेज्जदिभागेण गुणिदे हि ४।९। प a बादरआउपज्जत्तरा सिपमाणं होदि = । पुणो आवलिस्स असंखेज्जदिभागो बादरतेउपज्जत्तजीव परिमाणं ४ प a होदि ८ । पुणो लोगस्स संखेज्जदिभागो बादरवाउपज्जत्तजीवपमाणं होदि = | सगसगबादरपजत्तरासिस्स a पुनः पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण जगप्रतरमें आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणित प्रतरांगुलका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतना बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त जीवराशिका प्रमाण होता है । इसे आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणित करनेपर बादर अकायिक पर्याप्त जीवराशिका प्रमाण होता है । उदाहरण– g. बा. प. राशि = (पल्यो. X प जलका. बा. प. राशि Jain Education International जगप्र. १ ४ -()·(*)-(+) X ९ ÷ = पृ. बा. प. X घना. ८ असं = a ÷ आ. असं. प्रतरांगुल x === == ९ ४a पुनः आवली असंख्यातवें भागप्रमाण बादर तेजस्कायिक पर्याप्त जीवराशि होती है । उदाहरण - तेजका. बा. प. रा. For Private & Personal Use Only = = प ९ ra आ. असं. X = प ९ 8 a पुनः लोक संख्यातवें भागरूप बादर वायुकायिक पर्याप्त जीवराशिका प्रमाण होता है । लो. उदाहरण -- वायुका. बा. प. रा. = सं. = प अपनी अपनी बादर राशिमेंसे अपनी अपनी बादर पर्याप्त राशिको घटा देनेपर www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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