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-५. २८०]
पंचमो महाधियारो · लोगम्मि पविट्ठासु चत्तारि वि यसंखेजा' लोगा भवंति । एवं णेदव्वं जाव बिदियवारविदसलागरासी
समत्तो ति। तदो चत्तारि वि असंखेज्जा लोगा। पुणो उठ्ठिदमहारासिं सलागभूदं ठविय अवरेगमुहिदैमहारासिं, विरलिदूण उद्विदमहारासिपमाणं" दादूण वग्गिदसंवग्गिदं करिय सलागरासीदो एगरूवमणिदव्वं । तावे चत्तारि वि असंखेज्जा लोगा। एवमेदेण कमेण णेदच्वं जाव तदियवारविदसलागारासी समत्तो त्ति। तावे चत्तारि वि असंखेजा लोगा। पुणो उद्विदमहारासिं तिप्पडिरासिं कादूण तत्थेगं सलागभूदं ठविय भण्णेगरासिं विरलिदूण तत्थ एक्केक्कस्स रूवस्स एगरासिपमाणं दादूण वग्गिदसंबग्गिदं करिय सलागरासीदो एगरूवमवणेयव्वं । एवं पुणो पुणो करिय णेदव्वं जाव' अदिकंतअण्णोण्णगुणगारसलागादि ऊणचउत्थवारट्ठवियअण्णोण्णगुणगारसलागरासी समत्तो त्ति । तावे तेउकाइयरासी उहिदा भवदि = a। तस्स गुणगारसलागा चउत्थवारट्टविदसलागरासिपमाणं होदि ॥९॥° पुणो तेउकाइयरासिमसंखेजलोगेण भागे
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अन्योन्यगुणकारशलाकाओंमें प्रविष्ट होनेपर चारों ही राशियां असंख्यात लोकप्रमाण हो जाती हैं । इस प्रकार जब तक दूसरी वार स्थापित शलाकाराशि समाप्त न हो जावे तब तक इसी क्रमसे करना चाहिये । तब भी चारों राशियां असंख्यात लोकप्रमाण होती हैं । पुन: उत्पन्न हुई महाराशिको शलाकारूपसे स्थापित करके उसी उत्पन्न महाराशिका विरलन करके उत्पन्न महाराशिप्रमाणको एक एक रूपके प्रति देकर और वर्गितसंवर्गित करके शलाकाराशिमेंसे एक कम करना चाहिये। इस समय चारों राशियां असंख्यात लोकप्रमाण रहती हैं। इस प्रकार तीसरी वार स्थापित शलाकाराशिके समाप्त होने तक यही क्रम चालू रखना चाहिये । तब चारों ही राशियां असंख्यात लोकप्रमाण रहती हैं । पुनः इस उत्पन्न महाराशिकी तीन प्रतिराशियां करके उनमेंसे एकको शलाकारूपसे स्थापित कर और दूसरी एक राशिका विरलन करके उसमेंसे एक एक रूपके प्रति एक राशिप्रमाणको देकर और वर्गितसंवर्गित करके शलाकाराशिसे एक रूप कम करना चाहिये । इस प्रकार पुनः पुनः करके जब तक अतिक्रान्त अन्योन्यगुणकारशलाकाओंसे रहित चौथी वार स्थापित अन्योन्यगुणकारशलाकाराशि समाप्त न हो जाये तब तक इसी क्रमसे लेजाना चाहिये । तब तेजकायिक राशि उत्पन्न होती है जो असंख्यात घनलोकप्रमाण है। घनलोककी संदृष्टि = तथा असंख्यातकी संदृष्टि a है । उस तेजकायिक राशिकी अन्योन्यगुणकारशलाकायें चौथी बार स्थापित शलाकाराशिके समान होती हैं । इस राशिके असंख्यातकी संदृष्टि ९ है । पुनः तेजस्कायिक राशिमें असंख्यात लोकका भाग देने पर जो लब्ध आवे उसे इसी राशिमें
१ द ब वि तियसंखेज्जा. २द ब पविछो त्ति. ४ द समाणं. ५ द ब णावदं. ६ द ब तादे. ९ द ब तेउकायपरासी. १०द व ॥ ॥
३ द वगेतमुहिद, ब वेत्तागमुछिद'.. ७ द ब जाम. ८ द ब तादे.
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