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________________ -५. २८०] पंचमी महाधियारी - वियला वितिचउरक्खा सयला सण्णी असण्णिणो एदे। पजत्तेवरभेदा' चोत्तीसा मह यणेयविदा ॥ २८. 13. भ. . ४ वा. ४.सा.४ मासु. बा.सु. बा.सु. बा.सु. बा.सु.प.अ.प.अ.प.भ.प.. I: सा. | प.४ | वि.२ | ति २|च.२ भ. . एवं जीवभेदपरूवणा गाहा । पुढविभआईभेय परूवेमो । एतो चोत्तीसविहाणं तिरिक्खाणं परिमाणं उच्चदे । [संपहि] सुत्ताविरुद्धेण आइरियपरंपरागदोवदेसेण तेउक्काइयरासिउप्पायणविहाणं वत्तइस्सामो। त जहा- एग घणलोग सलागभूदं ठविय अवरेगं घणलोग विरलिय एकेकस्स रूवस्स धणलोग दादूण वग्गिदसंबग्गिदं करिय सलागरासीदो एगरूवमवणेयम्वं । तावे एका अण्णोण्णगुणगारसलागा लढभदि। तस्सुप्पण्णरासिस्स पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता वग्गसलागा भवंति । तस्सद्धच्छेदणयसलागा भसं. दोइन्द्रिय, तीनइन्द्रिय और चारइन्द्रियके भेदसे विकल जीव तीन प्रकार, तथा संज्ञी और असंज्ञीके भेदसे सकल जीव दो प्रकार हैं। ये सब जीव ( १२ + ३ + २) पर्याप्त व अपर्याप्तके भेदसे चौतीस प्रकार होते हैं, अथवा अनेक प्रकार हैं ।। २८० ॥ द्वीन्द्रिय २ त्रीन्द्रिय २ चतुरिन्द्रिय २ पंचेन्द्रिय १ प. अ. प. अ. प. अ. संज्ञी असंज्ञी प. अ. प. अ. इस प्रकार ये गाथायें जीवभेदोंका प्ररूपण करनेवाली हैं । अब पृथ्वी आदि जीव भेदोंकी प्ररूपणा करते हैं । यहांसे आगे चौंतीस प्रकारके तिर्यचोंके प्रमाणको कहते हैं इस समय सूत्रसे अविरुद्ध आचार्यपरंपरासे चले आये उपदेशके अनुसार तेजस्कायिक राशिके उत्पादन-विधानको कहते हैं । वह इस प्रकार है-एक घनलोकको शलाकारूपसे स्थापित कर और दूसरे घनलोकका विरलन करके एक एक रूपके प्रति घनलोकप्रमाणको देकर और वर्गितसंवर्गित करके शलाकाराशिमेंसे एक रूप कम करना चाहिये। तब एक अन्योन्यगुणकारशलाका प्राप्त होती है। इस प्रकारसे उत्पन्न हुई उस राशिकी वर्गशलाकायें पल्यापमके असंख्यातवें भागप्रमाण होती हैं। इसी राशिकी अर्धच्छेदशलाकायें असंख्यात लोकप्रमाण और १९ ब भेदो. २ 'एवं जीवमेदपरूवणा गाहा' इत्येतत् प्रलोः पुनरुक्तम् । ३ द ब मुकि आईमेवं. ४द पुणलोगस्स. ५६ब पुणलोगं. ६दब एक्केक्कं सरूबस्स. ........... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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