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________________ · - ५. २७३ ] पंचमो महाधियारो [ ५९१ सत्तारसमपक्खे अप्पा बहुगं वत्तइस्लामो । तं जहा - धाईड खेत फलादो पुक्खरवरदीवस्स खेत्तफलं वीसगुणं । धादई सहिद पोक्बरवरदीवखे त्तफलादो वारुणिवरखे त्तफलं सोलसगुणं । धादईपोक्बरवरदीवसहियवारुणिचरदीवखेत्तफलादो वीरवरदीवखेत्तफलं पण्णारसगुणं होऊन सीदिसहस्वसहियएक्का दिलक्कोडीओ अब्भहियं होइ ९१८००००००००००० । एवं खीरवरदीयप्पहृदि अब्भंतरिमसव्वदीवखेत्तफलादो तदनंतर बाहिर भागणिविहृदीव खेत्तफलं पण्णारलगुगं पक्खेव भूदसीदिसहस्सकोडिस हियएक्कानवदिलक्खकोडीओ चउग्गुणं होऊन एयलक्ख- अट्ठस हस् कोडि जोयणेहिं अब्भहियं होइ १०८०००००००००० । एवं णेदव्वं जाव सयंभूरमणदीओ ति । तत्थ अंतिमवियप्पं वत्तइस्लामो - सयंभूरमणदीवस्स हेट्टिमसव्वदीवाणं खेत्तफलपमाणं रज्जूवे बग्गं तिगुणिय वीसुत्तरतियसदाहि भजिदमेत्तं पुणां एकसहस्सं तिणस उसकोडीओ सत्ततीस लक्खं पण्णाससहस्वजोयणेहिं अब्भहियं होइ । पुणो एकतीस सह स्पं अट्ठमयपंचहत्तरिजोयणेहिं गुणिदरज्जूए परिहीणं होइ । तस्स ठेवणा । ३३० । धण जोयणाणि १३५९३७५०००० | रिण रज्जू । ३१८७५ | सयंभूरमणदीवस्स खेत्तफलं रज्जूए कदी णवरूवेहिं गुणिय चउसद्विरूवेहिं भजिदमेत्तं पुणो रज्जू ठविय अट्ठावीससहस्स-एक्कसयपंचवीसरूवेहिं गुणिद सत्तरहवें पक्षमें अल्पबहुत्वको कहते हैं । वह इस प्रकार है- धातकीखण्ड के क्षेत्रफल से पुष्करवरद्वीपका क्षेत्रफल बीसगुणा है । धातकीखण्ड सहित पुष्करवरद्वीप के क्षेत्रफल से वारुणीवरद्वीपका क्षेत्रफल सोलहगुणा है । धातकीखण्ड और पुष्करवरद्वीपसे सहित वारुणीवरद्वीप के क्षेत्रफलसे क्षीरवरद्वीपका क्षेत्रफल पन्द्रहगुणा होकर इक्यानत्रै लाख अस्सी हजार करोड़ योजन अधिक है ९९८००००००००००० । इस प्रकार क्षीरवरप्रभृति अभ्यन्तर सब द्वीपों के क्षेत्रफलसे तदनंतर बाह्य भागमें स्थित द्वीपका क्षेत्रफल पन्द्रहगुणा होनेके अतिरिक्त प्रक्षेपभूत इक्यानबे लाख अस्सी हजार करोड़ चौगुणे होंकर एक लाख आठ हजार करोड़ योजनोंसे अधिक हैं १०८०००००००००० | यह क्रम स्वयंभूरमणद्वीप तक जानना चाहिये । इनमें से अन्तिम विकल्पको कहते हैं - स्वयंभूरमणद्वीप के अधस्तन सब द्वीपोंके क्षेत्रफलका प्रमाण राजुके वर्गको तिगुणा करके तीनसौं बीसका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उसमें, एक हजार तीन सौ उनसठ करोड़ सैंतीस लाख पचास हजार योजन अधिक तथा इकतीस हजार आठसौ पचत्तर योजनोंसे गुणित राजुसे हीन है । उसकी स्थापना --- । ( रा. २ ×३ ÷ ३२० ) + यो. १३५९३७५००००- ( रा. x ३१८७५ ) । स्वयंभूरमणद्वीपका क्षेत्रफल राजुके वर्गको नौसे गुणा करके चौंसठका भाग देने पर जो लब्ध आवे उसमेंसे, राजुको स्थापित करके अट्ठाईस हजार एक सौ पच्चीससे गुणा करने पर १ द ब एयलक्ख- अट्ठारस सहरस, अंकेष्वपि ११८० आदि । ३ द ब पंचवीसस हरसरू वे हिं. Jain Education International For Private & Personal Use Only २ द ब रज्जूएविं. ५ १० www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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