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________________ - ५. २६० ] पंचमो महाधियारो [ ५७५ टिमसमासो वि- इट्ठस्स कालोदसमुद्दादो हेट्ठिमेक्करस समुदरस दोण्णिदिस रुंद समासं व उलबखं होदि ४००००० । पोक्खरवरसमुहादो हेट्ठिमदोण्णिसमुद्दाणं दोण्णिदिसरुंदसमासं वीसलक्खजोयणपमाणं होदि २०००००० । एवमब्भंतरिमणीररासिस्स दोणिदिसरुंदसमासादो तदनंतरोवरिमसमुहस्स एयदिसरुंदवडी चउगुणं चउलक्खेणम्भहियं होऊण गच्छद्द जाव अहिंदवरसमुद्दो ति । तन्वङ्कीर्ण आणयणहेतुं इमं गाहासुतं - दुगुणिय सगसगवासे चडलक्खे अवणितॄण तियभजिदे । तीदरयणायराणं दोदिसभायम्मि पिंडफलं ॥ २६० ranपक्खे अप्पा बहुगं वत्तइस्सामो- जंबूदीवस्स बादरसुहुमखेत्तफलरस पमाणेण लवणसमुदस्स खेत्तफलं किज्जतं चउवसगुणं होदि २४ । जंबूदीवस्स खेत्तफलादो धादईसंडस्स खेत्तफलं चउदालीसब्भहियं एक्कसयमेत्तं होदि १४४ । एवं जाणिदूण दव्वं जाव सयंभूरमणसमुद्दो ति । तत्थ अंतिमवियपं वत्तइस्लामो - जगसेढीए वग्गं तिगुणिय एक्कलक्खछण्णउदिसहस्सकोडिरूवेहिं भजिदमेत्तं पुणो तिगुणिदसेडिं चोहरुलक्खरूवेहि भजियमेत्तेहिं अव्भहियं होदि पुणेो णवकोसेहिं परिहीणं । तस्स १० उदाहरण- वारुणीवरसमुद्रका वि. १२८ ला + ४ ला + ३ = ४४ ळा. वृद्धि । अधस्तन योग भी — इष्ट कालोदसमुद्र से अधस्तन एक लवणसमुद्रका दोनों दिशाओं संबन्धी विस्तारसमास चार लाख है -- ४००००० । पुष्करवर समुद्र से अधस्तन दोनों समुद्रों का दोनों दिशाओंसम्बन्धी विस्तारसमास बीस लाख योजनप्रमाण है- २०००००० । इस प्रकार अभ्यन्तर समुद्र के दोनों दिशाओंसम्बन्धी विस्तारसमास से तदनन्तर स्थित उपरिम समुद्रकी दोनों दिशासम्बन्धी विस्तार वृद्धि चौगुणी और चार लाख अधिक होकर अहीन्द्रवर समुद्र तक चली गई है। उस वृद्धिको लानेके लिये यह गाथासूत्र है अपने अपने दुगु विस्तारमेंसे चार लाख कम करके शेषमें तीनका भाग देने पर जो लब्ध आवे उतना अतीत समुद्रोंके दोनों दिशाओंसम्बन्धी विस्तारका योग होता है ॥ २६० ॥ उदाहरण - पु . समुद्रका वि. ३२ ला x २ - ४ला. : ३ला. = २० ला. कालोद और लवण समुद्रका सम्मिलित उभय दि. विस्तार । नव पक्ष में अल्पबहुत्वको कहते हैं—- जम्बूद्वीप के बादर व सूक्ष्म क्षेत्रफल के प्रभाणसे लवणसमुद्रका क्षेत्रफल करनेपर चौबीसगुणा होता है २४ । जम्बूद्वपिके क्षेत्रफल से धातकी - खण्डका क्षेत्रफल एक सौ चवालीस गुणा है १४४ । इस प्रकार जानकर स्वयंभूरमणसमुद्रपर्यन्त लेजाना चाहिये । उसमेंसे अन्तिम विकल्पको कहते हैं- जगश्रेणी वर्गको तिगुणा करके उसमें एक लाख छयानबे हजार करोड़ रूपोंका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतना और तिगुणी जगश्रेणी में चौदह लाखका भाग देने पर लब्ध हुए प्रमाणसे अधिक तथा नौ कोश कम है । उसकी स्थापना इस प्रकार है- १ द ब किंजुतं. Jain Education International ५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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