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-५. १९३ ]
पंचमो महाधियारो
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तस्स य थलस्स उवार समतदो दोषिण कोस उच्छेह । पंचसयचावरुंदं चउगोउरसंजुदं वेदी॥ १८७
को २ । दंड ५००। रायंगणबहुमझे कोस सयं पंचवीसमन्भहियं । विक्खंभो तहगुणो उदओ गाढ' दुवे कोसा ॥ १८८
१२५ । २५० । को २ । पासादो मणितोरणसंपुण्णो अट्ठजोयणुच्छेहो । चउवित्थारो दारों वजकवाडेहिं सोहिल्लो ॥ १८९
८।४। एदस्स चउदिसासु चत्तारो होंति दिव्वपासादा । उप्पण्णुप्पण्णाणं चउ चउ वहति जाव छकंतं ॥ १९० एत्तो पासादाणं परिमाणं मंडलं पडिभणामो । एक्को हवेदि मुवखो चत्तारो मंडलम्मि पढमम्मि ॥ १९१
१।४। सोलस बिदिए तदिए चउसट्ठी बेसदं च छप्पण्णं । तुरिमे तं चउपहद पंचमिए मंडलाम्म पासादा ॥ १९२
१६ । ६४ । २५६ । १०२४ । चत्तारि सहस्साणिं छपणउदिजुदाणि होति छट्ठीए । एत्तो पासादाणं उच्छेहादि परवेमो ॥ १९३
इस स्थलके ऊपर चारों ओर दो कोश ऊंची, पांचसौ धनुष विस्तीर्ण और चार गोपुरोंसे युक्त वेदी स्थित है ॥ १८७ ॥ उत्सेध २ को. । विस्तार ५०० धनुष ।
राजांगणके बहुमध्यभागमें एकसौ पच्चीस कोश विस्तारवाला, इससे दूना ऊंचा, दो कोशमात्र अवगाहसे सहित, और मणिमय तोरणोंसे परिपूर्ण प्रासाद है । इसका वज्रमय कपाटोंसे सुशोभित द्वार आठ योजन ऊंचा और चार योजनमात्र विस्तारसे सहित है ॥ १८८-१८९ ।। प्रासादविस्तार १२५ । उत्सेध २५० । अवगाह २ को. । द्वारोत्सेध ८ । विस्तार ४ यो.।
इसकी चारों दिशाओंमें चार दिव्य प्रासाद हैं । (१) उनसे आगे छठे मण्डल तक उत्तरोत्तर चार चार गुणे प्रासाद हैं ॥ १९०॥
यहांसे प्रत्येक मण्डलके प्रासादोंके प्रमाणको कहते हैं। एक (मध्यका ) प्रासाद मुख्य है । प्रथम मण्डलमें चार प्रासाद हैं ॥ १९१ ॥
द्वितीय मण्डलमें सोलह, तृतीयमें चौंसठ, चतुर्थमें दो सौ छप्पन और पाचवें मण्डलमें इससे चौगुणे अर्थात् दश सौ चौबीस प्रासाद हैं ॥ १९२ ॥
द्वि. मं. १६ । तृ. मं. ६४ । च. मं २५६ । पं. मं. १०२४ । ___ छठे मण्डलमें चार हजार छयानबै प्रासाद हैं । अब यहांसे आगे भवनोंकी उंचाई आदिका निरूपण किया जाता है ॥ १९३ ॥ षष्ठ मं. ४०९६।
१ व उवउगादं.
२द दारा.
३६ एको.
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