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५३८ तिलोयपण्णत्ती
[५.६२गंदाणंदरदीओ गंदुत्तरणंदिघोसणामाओ । एदाओ वावीओ पुब्वादिपदाहिणकमेणं ॥ ६२ असोयवणं पढमं ण' सत्तच्छदचंपयाण विउणाणिं | चूदवणं पत्तेकं पुवादिदिसासु चत्तारि ॥ ६३ जोयणलक्खायामा तदद्धवासा भवति वणसंडा । पत्तेकं चेत्तदुमा वणणामजुदा वि एदाणं ॥ ६४ वावीणं बहुमज्झे दधिमुहणामा भवंति दधिवण्णा । एक्केक्का वरगिरिणो पत्ते के अयुदजोयणुच्छेहो ॥ ६५
तम्लेत्तवासजुत्ता सहस्सगाढम्मि वजसमवहा । ताणोवरिमताडेसुं तडवेदीवरवणाणि विविहाणि ॥ ६६
वावीण बाहिरेसुं दोसु कोणेसु दोण्णि पत्तेकं । रतिकरणामा गिरिणो कणयमया दहिमुहसरिच्छा ।। ६७ जोयणसहस्सवासा तेत्तियमेत्तोदया य पत्तेक्कं । अडाइज्जसयाई अवगाढा रतिकरा गिरिणो ॥ ६८
१०००। १०००। २५० । ते चउचउकोणेसु एक्केवदहस्स होति चत्तारि । लोयविणिच्छियकत्ता एवं णियमा परूवेति ॥ ६९
पाठान्तरम् ।
नन्दा, नन्दवती, नन्दोत्तरा और नन्दिघोषा नामक ये चार वापिकायें पूर्वादिक दिशाओंमें प्रदक्षिण रूपसे स्थित हैं ॥ ६२ ॥
पूर्वादिक चारों दिशाओं से प्रत्येकमें प्रथम अशोकवन, सप्तच्छद और चम्पक वन एवं आम्रवन ये चार वन हैं ॥ ६३ ॥
ये वनखण्ड एक लाख योजन लंबे और इससे आधे विस्तारसे सहित हैं । इनमेंसे प्रत्येक वनमें वनके नामसे संयुक्त चैत्यवृक्ष हैं ॥ ६४ ॥
वापियोंके बहुमध्यभागमें दहीके समान वर्णवाले एक एक दधिमुख नामक उत्तम पर्वत हैं । इनमेंसे प्रत्येक पर्वतकी उंचाई दश हजार योजनप्रमाण है ॥ ६५ ॥ १०००० ।
उतनेमात्र ( दश हजार यो.) विस्तारसे सहित उक्त पर्वत एक हजार योजन गहराईमें वज्रमय व गोल हैं। इनके उपरिम तटोंपर तटवेदियां और विविध प्रकारके वन हैं ॥६६॥
___ व्यास १०००० । अवगाह १००० । वापियोंके दोनों बाह्य कोनोंमेंसे प्रत्येकमें दधिमुखोंके सदृश सुवर्णमय रतिकर नामक दो पर्वत हैं ॥ ६७॥
प्रत्येक रतिकर पर्वतका विस्तार एक हजार योजन, इतनी ही उंचाई और अढ़ाई सौ योजनप्रमाण अवगाह है ॥ ६८ ॥ व्यास १००० । उदय १०००। अवगाह २५० ।।
वे रतिकर पर्वत प्रत्येक द्रहके चार चार कोनोंमें चार होते हैं, इस प्रकार लोकविनिश्चयकर्ता नियमसे निरूपण करते हैं ॥ ६९॥
पाठान्तर ।
१ द व पट्टमाणं.
२द व रतिकर.
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