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तिलोयपण्णत्ती
[ ५.२२
उवही सयंभुरमणो अंते दीओ सयंभुरमणो त्ति । आदिल्लो णादव्बो अहिंदवरउवहिदीवा य ॥ २२ देववदधिदीओ जखवरक्खो समुददीवा य । भूवरण्णवदीवा समुददीवा वि णागवरा ॥ २३ वेरुलियजलहिदीवा वज्जवरा वाहिणीरमणदीवा । कंचणजलणिहिदीवा रुपवरा सलिलणिहिदीवा ॥ २४ हिंगुलपयोधिदीवा अंजणवरगिण्णगादइददीवा' । सामसमुदो दीवो सिंदूरी अंबुणिहिदीवा ॥ २५ हरिदालसिंधुदीवा मणितिलकल्लोलिणीरमणदीवा । एव समुदा दीवा बाहिरदो होंति बत्तीसा ॥ २६ चउसट्ठीपरिवज्जिदअड्डाइजंबुरासिरोमाणि । सेसंभोणिहिदीवा सुभणामा एक्कणाम बहुवाणं ॥ २७ जंबूदीवे लवणो उवही कालो त्ति घादईसंडे । अवसेसा वारिणिही वत्तव्वा दीवसमणामा ॥ २८ पत्तेयरसा जलही चत्तारो होंति तिष्णि उदयरसा । सेसद्धी उच्छुरसा तदियसमुद्दम्मि मधुसलिलं ॥ २९ पत्तेकरसा वारुणिलवणाद्विघदवरा य खीरवरो । उदकरसो कालोदो पोक्खरओ सर्वभुरमणो य ।। ३०
अन्तसे प्रारम्भ करनेपर स्वयंभूरमणसमुद्र, पश्चात् स्वयम्भूरमणद्वीप आदिमें है ऐसा जानना चाहिये । फिर अहीन्द्रवरसमुद्र, अहींन्द्रवरद्वीप, देववरसमुद्र, देववाद्वीप, यक्षवरसमुद्र, यक्षवरद्वीप, भूतवरसमुद्र, भूतवरद्वीप, नागवरसमुद्र, नागवरद्वीप, वैडूर्वसमुद्र, वैद्वीप, वज्रवरसमुद्र, वज्रवरद्वीप, कांचनसमुद्र, कांचनद्वीप, रूप्यवरसमुद्र, रूप्यवरद्वीप, हिंगुलसमुद्र, हिंगुलद्वीप, अंजनवर निम्नगाधिपति, अंजनवरद्वीप, श्यामसमुद्र, श्यामद्वीप, सिंदूरसमुद्र, सिंदूरद्वीप, हरितालसमुद्र, हरितालद्वीप तथा मनः शिलसमुद्र, मनशिलाद्वीप ये बत्तीस समुद्र व द्वीप बाह्य भागमें हैं ।। २२-२६ ॥
चौंसठ कम अढ़ाई उद्धारसागरों के रोमोंप्रमाण अवशिष्ट सुभनामधारक द्वीप समुद्र हैं । इनमें बहुतों का एक ही नाम है ॥ २७ ॥
जम्बूद्वीपमें लवणोदधि और धातकीखंडमें कालोद नामक समुद्र है । शेष समुद्रोंके नाम द्वीपों के नामों के समान ही कहना चाहिये ॥ २८ ॥
चार समुद्र प्रत्येकरस अर्थात् अपने नामों के अनुसार रसवाले तीन उदरस ( स्वाभाविक जल के स्वाद से संयुक्त ) और शेष समुद्र ईखके समान रससे सहित हैं। तीसरे समुद्र में मधुरूप जल है ॥ २९ ॥
वारुणीवर, लवणाधि, घृतवर और क्षीरवर, ये चार समुद्र प्रत्येकरस; तथा कालोद, पुष्करवर और स्वयम्भूरमण, ये तीन समुद्र उदकरस हैं ॥ ३० ॥
१ व णिणिगादइदीवा, द णिण्णगादददीवा २ द ब 'रोमा ३ द सुमणामो ४ द सेसदिय.
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