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त्रिलोकप्रज्ञप्तिकी प्रस्तावना भीतर भूगोलके वर्णनमें बतलाया गया है कि इस पृथिवीपर वलयाकारसे एक-दूसरेको वेष्टित करके अनेक द्वीप व समुद्र स्थित हैं । उन सबके मध्यमें पहिला जम्बूद्वीप है। इसके ठीक बीचमें नामिके समान मेरु पर्वत स्थित है। इसके दक्षिण व उत्तरमें तीन तीन कुलपर्वतोंके होनेसे उक्त जम्बूद्वीपके भरतादिक सात विभाग हो गये हैं इत्यादि । लगभग इसी प्रकारसे वैदिक.धर्मके ग्रन्थोंमें भी उक्त भूगोलका वर्णन पाया जाता है। उदाहरण स्वरूप हम विष्णुपुराणके आधारसे भूगोलका वर्णन करते हैं। यद्यपि पुराण ग्रन्थ होनेसे इसमें मुख्यतासे विष्णु भगवान्के चरित्रका ही वर्णन किया गया है। पर साथ ही इसमें भूगोल, ज्योतिष, वर्णाश्रमव्यवस्था, राजवंश एवं अनेक उपाख्यानोंकी भी चर्चा की गई है।
प्रस्तुत ग्रन्थके द्वितीय अंशमें दूसरे अध्यायसे भूगोलका वर्णन प्रारम्भ किया गया है। यहां बतलाया है कि इस पृथिवीपर १ जम्बू, २ प्लक्ष, ३ शाल्मल, ४ कुश,'५ क्रौंच,६ शाक
और ७ पुष्कर', ये सात द्वीप हैं। ये द्वीप आकारसे गोल (चूड़ी जैसे) होते हुए अपने विस्तारके समान विस्तारवाले १ लवणोद, २ इक्षुरस, ३ सुरोद, ४ सर्पिस्सलिल, ५ दधितोय, ६. क्षीरोद और ७ स्वादुसलिल, इन सात समुद्रोंसे क्रमशः वेष्टित हैं। इन सबके बीचमें जम्बूद्वीप है। इसका विस्तार एक लाख योजन है जो जैन-ग्रन्थ-सम्मत है । उसके मध्यमें चौरासी हजार योजन ऊंचा मेरु पर्वत है। इसकी नीव पृथिवीके भीतर सोलह हजार योजन प्रमाण है । विस्तार उसका मूलमें सोलह हजार और फिर ऊपर क्रमशः बढ़ता हुआ शिखरपर जाकर बत्तीस हजार योजन मात्र हो गया है।
इस जम्बूद्वीपमें सुमेरुसे दक्षिणमें हिमवान् , हेमकूट और निषध तथा उत्तरमें नील, त और शृङ्गी, ये छह वर्षपर्वत हैं जो इसको सात भागों में विभक्त करते हैं । इनमें से क्रमशः मेहके दक्षिण और उत्तरमें स्थित निषध और नील ये दो पर्वत पूर्व-पश्चिम समुद्र तक एक एक लाख योजन लम्बे, दो दो हजार योजन ऊंचे और इतने ही विस्तारसे संयुक्त हैं । हेमकूट और चेत ये दो पर्वत पूर्व-पश्चिममें नब्बै हजार यो. लम्बे, दो हजार योजन ऊंचे और इतने ही विस्तत भी हैं । हिमवान् और शृङ्गी ये दो पर्वत अस्सी हजार यो. लम्बे, दो-दो हजार यो.
, जैन शास्त्रानुसार १५ वे द्वीपका नाम कुशवर है। २ जैन ग्रन्थों में क्रौंचवर सोलहवा द्वीप है।
३ यह द्वीप जैन शास्त्रानुसार तीसरा है। ४ जैन शास्त्रानुसार लवणोद पहिला, सुरोद (वारुणिवर) चौथा, सर्पिःसलिल छठा और क्षीराद पांचवा समुद्र है। ५ जैन ग्रन्थानुसार जम्बूद्वीपस्थ मेरुकी उंचाई १००००० यो. और धातकीखण्ड एवं पुष्करद्वीपस्थ मेरुओंकी उंचाई ८४००० यो. है। जैन ग्रन्थोंमें उनके नाम इस प्रकार हैं- हिमवान्, महाहिमवान् , निषध, नील, रुक्मि (श्वेत-रजतमय ) और शिवरी (शही)।
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