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तिलोयपण्णत्ती
[१. १७८
उणवण्णभजिदसेढी असु ठाणेसुठाविदूण कमे । वासर्ट गुणऔरा सत्तादिछक्कवढिगदा ॥ १७८
-७ -१३ -१९।-२५ । -३१ -३७ । -४३ -४९ ।
सत्तघणहरिदलोयं सत्तसु ठाणेसु ठाविदूण कमे । विदफले गुणयारा दसपभवा छकवड्विगदा ॥ १७९
= १.। = १६ । =२२। २८1 =३४ । = ४० । B४६ ।
३४३ ३४३ ३४३ ३४३ ३४३ ३४३ ३४३ गुणाकर प्राप्त हुए गुणन-फलको भूमिके प्रमाणमेंसे घटा देना चाहिये। इस रीतिसे चतुर्थ स्थान का व्यास निकल आवेगा। इसीप्रकार मुखकी अपेक्षा चतुर्थ स्थानके व्यासको निकालनेके लिये वृद्धिके प्रमाण [६] को उक्त स्थानकी उंचाई [ ४ राजु ] से गुणा करके प्राप्त हुए गुणन-फलको मुखमें जोड देनेपर विवक्षित स्थानके व्यासका प्रमाण निकल आवेगा। उदाहरण-5 x ३=१८; भू...-१८ ३.१ भूमिकी अपेक्षा चतुर्थ स्थानका व्यास ।
६x४= २७९२४ + मु. ॐ= २१ मुखकी अपेक्षा चतुर्थ स्थानका व्यास ।
श्रेणीमें उनचासका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उसे क्रमसे आठ जगह रखकर व्यासके निमित्त गुणा करनेकेलिये आदिमें गुणकार सात है। पुनः इसके आगे क्रमसे छह छह गुणकारकी वृद्धि होती गई है ॥ १७८ ॥
श्रेणीप्रमाण रा. ७; 12 x ७; १९ x १३; 4 x १९; २ x २५; १९ x ३१; ४ ३७; १९४ ४३, ४६ x ४९.
सातके धन अर्थात् तीनसौ तेतालीससे भाजित लोकको क्रमसे सात जगह रखकर अधोलोकके सात क्षेत्रोंमेसे प्रत्येक क्षेत्रके घनफलको निकालनेकेलिये आदिमें गुणकार दश और फिर इसके आगे क्रमसे छह छहकी वृद्धि होती गई है ॥ १७९ ॥
लो. प्र. ३४३, ३४३ ७२ = १; १४ १०; १४ १६; १४ २२; १४ २८; १४ ३४; १ x ४०; १४ ४६.
विशेषार्थ-- मुख और भूमिको जोडकर उसे आधा करने पर प्राप्त हुए प्रमाणको विवक्षित क्षेत्रकी उंचाई और मुटाईसे गुणा करनेपर विषम क्षेत्रका घनफल निकलता है। इस नियमके अनुसार उपर्युक्त सात पृथिवियोंका घन-फल निम्नप्रकार है.----- प्र. पृथिविक्षेत्रका घ. फ. मु. * + भू. १३ : २४ १४७ = २४ = १० रा.
,,, १ + १९ २४ १४ ७ २२४ = १६ रा. ,, १ + २५ . २ ४१ x ७ = ३३४ = २२ रा.
+ ३.१ २ x १ x ७ = ३१९३२ = २८ रा.
+ ३०० २४१ ७ = ७६ = ३४ रा. ष. , , ३° + ४.३ २ x १ x ७ = ५६४ = ४० रा. , ४३ + ४.९ २४१४७ = ६४४ = ४६ रा.
कुल योग १९६ रा. १ब उणवणभजिद २ द ठाणेण. ३ बवासद्धं गुणआए.
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