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________________ २२ ] तिलोयपण्णत्ती [ १.१६८ सगवगुणिदलोओ उणवण्णहिदो भ सेसखिदिसंखा । तसखित्ते सम्मिलिदे चउगुणिदो सगहिदो लोभो ॥ १६८ = २७ । = ४ । ४९ ७ मुरजायारं उद्धं खेत्तं छेत्तूण मेलिदं सयलं । पुव्वावरेण जायदि वेत्तासणसरिससंठाणं ॥ १६९ सेठीए सत्तमभागो उवरिमलोयस्स होदि मुहवासो । पणगुणिदो तब्भूमी उस्सेहो तस्स इगिसेढी ॥ १७० ---५ । ७ ७ तियगुणिदो सत्ताहिदो उवरिमलोयस्स वणफलं लोओ । तस्सद्वै खेत्तफलं तिउष्णो चोद्दसहिदो लोओ ॥ १७१ = ३। = ३ १४ ७ खेत्तूर्ण तसैणालि अत्थं ठाविऊण विदफैलं । आज तं पमाणं उणवण्णेहिं विभत्तलोयसमं ॥ १७२ १। लोकको सत्ताईससे गुणा कर उसमें उनंचासका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतना सनालीको छोड़ शेष अधोलोकका घनफल समझना चाहिये । और लोकप्रमाणको चारसे गुणा कर उसमें सातका भाग देने पर जो लब्ध आवे उतना त्रसनालीसे युक्त पूर्ण अधोलोकका घनफल समझना चाहिये ॥ १६८ ॥ ३४३ × २७ ÷ ३४३ × ४ ÷ ४९ = १८९ त्रसनाली छोड़ शेष अ. लो. का घ. फ. ७ = १९६ पूर्ण अ. लो. का घनफल । मृदंगके आकार जो सम्पूर्ण ऊर्ध्वलोक है, उसे छेदकर मिला देने पर पूर्व-पश्चिम से वेत्रासन के सदृश अधोलोकका आकार बन जाता है ॥ १६९ ॥ ४९ ऊर्ध्वलोकके मुखका व्यास जगश्रेणीका सातवां भाग है, और इससे पांचगुणा (५ राजु) उसकी भूमिका व्यास, तथा उंचाई एक जगश्रेणी है १७० ॥ रा. १।५।७। antara गुणा करके उसमें सातका भाग देने पर जो लब्ध आवे उतना ऊध्वलोकका घनफल है, और लोकको तीनसे गुणा करके उसमें चौदहका भाग देने पर लब्धराशिप्रमाण ऊर्ध्वलोकसम्बन्धी आधे क्षेत्रका फल ( घनफल) होता है ॥ १७१ ॥ ७ = १४७ ऊ. लो. घ. फ. १४ = ७३३ अर्द्ध ऊ. लो. घ. फ. ऊर्ध्वलोक से त्रसनालीको छेदकर और उसे अलग रखकर उसका घनफल निकाले । इस घनफलका प्रमाण उनंचाससे विभक्त लोकके बराबर होगा || १७२ ॥ ३४३ ÷ ४९ = ७ अ. लो. त्र. ना. घ. फ. ३४३ × ३ ÷ ३४३ × ३ ÷ Jain Education International १ द . । ४ . २ द ब. संठाणा. ३ द तस्सणालिं. ४ द ब अण्णद्धं. ५ द बिंदुफलं. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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