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तिलोयपण्णत्ती
[ १.९५
खंदं सयलसमत्थं तस्स य अ भणति देसो त्ति । अद्धद्धं च पदेसो अविभागी होदि परमाणू ॥ ९५ सत्थेण 'सुतिक्खेणं छेत्तुं भेतुं च जं किरस्सकं । जलयणलादिहिं णासं ण एदि सो होदि परमाणू ॥ ९६ एक्करसवण्णगंधं दो पासा सद्दकारणमसद्दं । खंदंतरिदं दव्वं तं परमाणुं भणति बुधा ॥ ९७ अंतादिमज्झहीणं अपदेसं इंदिएहिं ण हु गेज्क्षं । जं दब्वं अविभत्तं तं परमाणुं कहंति जिणा ॥ ९८ परंति गलंति जदो पूरणगलणेहि पोग्गला तेण । परमाणु च्चिय जादा इय दिट्ठे दिट्टिवादम्हि ॥ ९९ वरसगंध फासे पूरणगलणाइ सव्वकालम्हि | खंदं पित्र कुणमाणा परमाणू पुग्गला तम्हारे ॥ १०० आदेसमुत्तमुत्तो धातुचउक्कस्स कारणं जादो । सो ओ परमाणू परिणामगुणो य खंदस्ल ॥ १०१ परमाणू अणताणतेहिं बहुविदेहि दव्वेहिं । उवसण्णासण्णो त्तिय सो खंदो होदि णामेण ॥ १०२
सप्रकार से समर्थ, अर्थात् सर्वांशपूर्ण स्कंध कहलाता है । उसके अर्धभागको देश और आधे आधे भागको प्रदेश कहते हैं। स्कंधके अविभागी अर्थात् जिसके और विभाग न होसकें ऐसे अंशको परमाणु कहते हैं ॥ ९५ ॥
जो अत्यन्त तीक्ष्ण शस्त्रसे भी छेदा या भेदा नहीं जा सकता, तथा जल और अग्नि आदिके द्वारा नाशको भी प्राप्त नहीं होता, वह परमाणु हैं ॥ ९६ ॥
जिसमें पांच रसोंमेंसे एक रस, पांच वर्णोंमेंसे एक वर्ण, दो गंधोंमेंसे एक गंध, और स्निग्ध-रूक्ष से एक तथा शीत-उष्ण में से एक ऐसे दो स्पर्श, इसप्रकार कुल पांच गुण हों, और जो स्वयं शब्दरूप न होकर भी शब्दका कारण हो एवं स्कन्धके अन्तर्गत हो, ऐसे द्रव्यको पण्डित जन परमाणु कहते हैं ॥ ९७ ॥
जो द्रव्य अन्त, आदि एवं मध्यसे विहीन हो, प्रदेशोंसे रहित अर्थात् एक प्रदेशी हो, इन्द्रियद्वारा ग्रहण नहीं किया जासकता हो और विभागरहित हो, उसे जिन भगवान् परमाणु कहते हैं ॥ ९८ ॥
क्योंकि स्कन्धों के समान परमाणु भी पूरते हैं, और गलते हैं, इसीलिये पूरण- गलन क्रियाओं के रहने से वे भी पुद्गल के अंतर्गत हैं, ऐसा दृष्टिवाद अंगमें निर्दिष्ट है ॥ ९९ ॥
परमाणु स्कन्धकी तरह सत्र कालमें वर्ण, रस, गन्ध और स्पर्श, इन गुणों में पूरण- गलन को किया करते हैं, इसलिये वे पुद्गल ही हैं ॥ १०० ॥
जो नयविशेषकी अपेक्षा कथंचित् मूर्त व कथंचित् अमूर्त है, चार धातुरूप स्कन्धका कारण है, और परिणमनस्वभावी है, उसे परमाणु जानना चाहिये ॥ १०१ ॥
नानाप्रकारके अनन्तानन्त परमाणु द्रव्योंसे उवसन्नासन्न नामसे प्रसिद्ध एक स्कंध उत्पन्न होता है ॥ १०२ ॥
१ व सुतिक्खेण यच्छेत्तुं च जं किररसक्का २ द ब सा. ३ तस्स. ४ पचा. ८५
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