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________________ २८०२ [५३] विषय गाथा विषय गाथा कुलपर्वतादिकोंका विस्तारादि २७९० कच्छ। व गन्धमालिनीके पास विदेहकी पुष्करार्द्धमें चार विजयार्द्ध व बारह ___ लम्बाईका प्रमाण २८३४ ___ कुलपर्वतोंका निरूपण २७९२ कच्छा व गन्धमालिनीकी आदिम विजयादिकोंके नाम २७९४ लम्बाई २८३६ दोनों भरत व ऐरावत क्षेत्रोंकी स्थिति २७९५ विजयादिकोंकी विस्तारवृद्धिका प्रमाण २८३८ सब विजयोंकी स्थिति व आकार २७९६ कच्छादिकोंकी आदिम, मध्यम व कुलाचल व इष्वाकार पर्वतोंका विष्कम्भ २७९८ ____ अन्तिम लम्बाईका प्रमाण । २८४४ पुष्कराचमें पर्वतरुद्ध क्षेत्रका प्रमाण २८०१ भरतादिक क्षेत्रोंके आदिम, मध्यम पमा व मंगलावतीकी सूची २८७९ और अन्तिम विष्कम्भके लानेका पद्मादिकोंकी आदिम, मध्यम व विधान अन्तिम लम्बाईका प्रमाण २८८० भरतादिक क्षेत्रों के विष्कम्भमें हानि हिमवान् पर्वतका क्षेत्रफल २९१४ वृद्धिका प्रमाण २८०४ चौदह पर्वतोंसे रुद्ध क्षेत्रफल २९१५ भरतादिकोंका अभ्यन्तर विस्तार २८०५ पुष्कररार्द्धद्वीपका समस्त क्षेत्रफल २९१७ भरतक्षेत्रका बाह्य विस्तार २८०९ पर्वतरहित पुष्करार्द्ध का क्षेत्रफल २९१८ पद्मद्रह व पुण्डरीकद्रहसे निकली हुई भरतादिकोंका क्षेत्रफल २९१९ ___ नदियोंके पर्वतपर जानेका प्रमाण २८१० पुष्कराईके जम्बूद्वीपप्रमाण खण्ड । २९२२ पुष्कराईद्वीपमें स्थित मेरुओंका निरूपण २८१२ मनुष्योंकी स्थिति २९२३ मेरुओंके अभ्यन्तर व बाह्य भागमें भरतादिक शेष अन्तराधिकार २९२५ स्थित चार गजदन्तोंकी लंबाई २८१३ मनुष्योंके भेद व उनकी संख्या २९२५ कुरुक्षेत्रके धनुष, ऋजु बाण और मनुष्योंमें अल्पबहुत्वका निरूपण जीवाका प्रमाण गुणस्थानादिकोंका निरूपण २९३५ वृत्तविष्कम्भके निकालनेका विधान २८१८ मनुष्योंकी गत्यन्तरप्राप्ति २९४४ कुरुक्षेत्रका वृत्तविष्कम्भ व वक्र बाण २८१९ मनुष्यायुका बन्ध २९४६ भद्रशालवनका विस्तार २८२१ मनुष्योंमें योनियोंका निरूपण २९४८ मेर्वादिकोंक पूर्वापरविस्तारका प्रमाण २८२३ सुख-दुखका निरूपण २९५४ मेर्वादिकोंके विस्तारके निकालनेका सम्यक्त्वप्राप्तिके कारण २८२९ मुक्तिगमनका अन्तर २९५७ कच्छा और गन्धमालिनीकी सूची व मुक्त जीवोंका प्रमाण २९६० उसकी परिधि २८३१ ।। अधिकारान्त मंगल २९६१ २८१५ २९५५ विधान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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