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तिलोयपण्णत्ती
[ ४. २९२९
तियपणदुगअडणवयं छप्पणअट्टएकदुगमेकं । इगिदुगचउणवपंचय मणुसिणिरासिस्स परिमाणं ॥ २९२९
५९४२११२१८८५६९८२५३१९५१५७९६२७५२ । सामण्णरासिमज्झे पजत्तं मणुसिणी य सोधिज । अवसेणं परिमाणं होदि यपज्जत्तरासिस्स ॥ २९३०
अंतरदीवमणुस्सा थोवा ते कुरुसु दससु संखेजा । तत्तो संखेजगुणा हवंति हरिरम्मगेसु वस्सेसुं ॥ २९३१ वरिसे संखेजगुणा हेरण्णवदम्मि' हेमवदवरिसे | भरहेरावदवस्से संखेजगुणा विदेहे य ॥ २९३२ होंति असंखेजगुणा लद्धिमणुस्साणि ते च सम्मुच्छा । तत्तो विसेसअधियं माणुससामण्णरासी य ॥ २९३३ पज्जत्ता णिव्वत्तियपजत्ता लद्धिया यपज्जत्ता । सत्तरिजुत्तसदज्जाखंडे पुण्णिदरलद्धिणरा' ॥ २९३४
। अप्पाबहुगं समत्तं । पणपणअज्जाखंडे भरहेरावदम्मि मिच्छगुणठाणं । अवरे वरम्मि चोद्दसपेरंत काइ दीसंति ॥ २९३५
एक, तीन, पांच, दो, आठ, नौ, छह, पांच, आठ, आठ, एक, दो, एक, एक, दो, चार, नौ और पांच, इतने अंकमात्र मनुष्यिणीराशिका प्रमाण है ॥ २९२७-२९२९ ॥
पर्याप्त मनुष्यराशि १९८०७०४०६२८५६६०८४३९८३८५९८७५८४ । मनुष्यिणीराशि ५९४२११२१८८५६९८२५३१९५१५७९६२७५२ ।
सामान्यराशिमेंसे पर्याप्त और मनुष्यणियोंके प्रमाणको घटा देनेपर जो शेष रहे, उतना अपर्याप्तराशिका प्रमाण होता है ॥ २९३० ॥।३।
अन्तर्वीपज मनुष्य थोड़े हैं । इनसे संख्यातगुणे मनुष्य दश कुरुक्षेत्रोंमें और इनसे भी संख्यातगुणे हरिवर्ष एवं रम्यक क्षेत्रों में हैं ॥ २९३१ ॥
हरिवर्ष व रम्यकक्षेत्रस्थ मनुष्योंसे संख्यातगुणे हैरण्यवत व हैमवतक्षेत्रमें, इनसे, संख्यातगुणे भरत व ऐरावतक्षेत्रमें, और इनसे भी संख्यातगुणे विदेहक्षेत्रमें हैं ॥ २९३२ ।।
इनसे लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य असंख्यातगुणे हैं । वे ( लब्ध्यपर्याप्त ) सम्मूर्च्छन होते हैं । लब्ध्यपर्याप्त मनुष्योंसे विशेष अधिक सामान्य मनुष्यराशि है ॥ २९३३ ॥
पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्तके भेदसे मनुष्य तीन प्रकारके होते हैं । एकसौ सत्तर आर्यखण्डोंमें पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्त तीनों प्रकारके ही मनुष्य होते हैं ॥ २९३४ ॥
__ अल्पबहुत्वका कथन समाप्त हुआ। भारत व ऐरावत क्षेत्रके भीतर पांच पांच आर्यखण्डोंमें जघन्यरूपसे मिथ्यात्वगुणस्थान और उत्कृष्टरूपसे कदाचित् चौदह गुणस्थान तक पाये जाते हैं ॥ २९३५ ॥
१ द ब मणुसिणिं य. २ द गुणवदम्मि. ५ द ब अवरे अवरम्मि चोद्दसपरत.
३ द सत्तरिजतं. ४ द ब पुण्णिदरेसु लद्धिणरा.
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