SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 570
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ –४.२८१५] चउत्थो महाधियारो [५०३ पणसट्ठिसहस्साणि चउस्सया जोयणाणि छादालं । तेरस कलाओ भणिदं भरहक्खिदिबाहिरे रुंदं ॥ २००९ ६५४४६ । १३ २१२ एत्थ वि पुग्वं वे णेदव्वं । पुक्खरवरद्धदीवे खुल्लयहिमवंतसिहरिमैजिझल्ले । पउमैदहपुंडरीए पुव्ववरदिसम्मिणिग्गदणदीओ ॥ २८१. अट्रेकछअट्टतियं अंककमे जोयणाणि गिरिउवरि । गंतूर्ण पत्तेकं दक्खिणउत्तरदिसम्मि जंति कमे ॥ २८११ . ३८६१८ । धादइसंडपण्णिददोषणं मेरूण सव्ववण्णणयं । एत्थेव य वत्तव्यं गयदंतब्भहसालकुरुरहिद ॥ २८१२ छक्केक्कएकछद्गछक्केकं जोयणाणि मेरूणं । अभंतरभागट्टियगयदंताणं चउण्हाणं ॥ २०१३ १६२६११६ । णवइगिदोहोचउणभदो अंककमेण जोयणा दीहं । दोमेरूणं बाहिरगयदंताणं चउण्हाणं ॥ २८१४ २०४२२१९ । छत्तीसं लक्खाणिं अडसट्ठिसहस्सतिसयपणतीसा । जोयणयाणि पोक्खरदीवद्धे होदि कुरुचावं ॥ २०१५ ३६६८३३५। पैंसठ हजार चारसौ छयालीस योजन और तेरह कला अधिक भरतक्षेत्रका बाह्य भागमें विस्तार कहा गया है ॥ २८०९॥ १४२३०२४९ - ३५५६८४१९ २१२४१ = ६५४४६५१३। ___ पहिलेके समान यहांपर भी हैमवतादिक क्षेत्रोंका विस्तार चतुर्गुणी वृद्धि व हानिरूप जानना चाहिये । पुष्करार्धद्वीपमें क्षुद्रहिमवान् और शिखरी पर्वतपर स्थित पद्मद्रह व पुण्डरीकद्रहके पूर्व और पश्चिमदिशासे निकली हुई नदियां अंकक्रमसे आठ, एक, छह, आठ और तीन अंकप्रमाण अर्थात् अडतीस हजार छहसौ अठारह योजनमात्र पर्वतके ऊपर जाकर क्रमसे प्रत्येक दक्षिण व उत्तरदिशाकी ओर जाती हैं ॥ २८१०-२८११ ॥ ३८६१८।। ___ धातकीखण्डमें वर्णित दोनों मेरुओंका समस्त वर्णन गजदन्त, भद्रशाल और कुरुक्षेत्रोंको छोड़कर यहांपर भी कहना चाहिये ॥ २८१२ ॥ : छह, एक, एक, छह, दो, छह और एक, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजनप्रमाण मेरुओंके अभ्यन्तरभागमें स्थित चारों गजदन्तोंकी लंबाई है ॥ २८१३ ॥ .. १६२६११६ । ___ नौ, एक, दो, दो, चार, शून्य और दो, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या प्राप्त हो उतने योजनप्रमाण दोनों मेरुओंके बाह्य भागमें स्थित चारों गजदन्तपर्वतोंकी लंबाई है ॥ २८१४ ॥ २०४२२१९ । पुष्करार्द्धद्वीपमें कुरुक्षेत्रका धनुष छत्तीस लाख अडसठ हजार तीनसौ पैंतीस योजनमात्र है ॥ २८१५ ॥ ३६६८३३५ । - १द पण्णट्ठ. २ द ब पुव्वं गेदव्वं. ३ द बसिहर. ४ द पउद्दसह, ब पउमद्दसह, ५ ब गयदंतभद्दसालकुरुरहिदा. ६ द ब अंककमेणाणि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy