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तिलोयपण्णत्ती
[ ४.२८०३
सगसगसलायगुणिदं होदि पुढं भरहपहदिविजयाणं । इच्छिदपदेसरुंदा तहिं तहिं तिणि णियमेणं ॥ २८०३ महवाभरहादिसु विजयाणं बाहिररुंदम्मि आदिम रुंदं । सोहिय अडलक्खहिदे खयबड्डी इच्छिदपदेसे ॥ २८०४ एकत्तालसहस्सा पंचसया जोयणाणि उणसीदी । तेहत्तरिउत्तरसदकलाओ अभंतरे भरहरुंदं ॥ २८०५
४१५७९ । १७३
२१२ भरहस्स मूलरुंदं चउगुणिदे होदि हेमवदभूएं। अभंतरम्मि रुंदं तह हरिवरिसस्स चउगुणिदं ॥ २८०६ १६६३१९। ५६६६५२७७ । १२
२१२ हरिवरिसो चउगुणिदो रुंदो अब्भंतरे विदेहस्स । सेसवरिसाण रुंदं पत्तेकं चउगुणा हाणी ॥ २८०७ २६६११०८।४८ ६६५२७७ । १२ | १६६३१९। ५६ | ४१५७९ । १७३ २१२ २१२ २१२
२१२ एवं सगसगविजयाणं आदिमरुंदपहुदीमओ। बाहिरचरिमपदेसे रुदंतिम ति वत्तब्वं ॥ २००८
गुणा करनेपर नियमसे भरतादिक क्षेत्रोंका वहां वहां इच्छित स्थानमें (आदि, मध्य और अन्तमें) तीनों प्रकारका विस्तारप्रमाण होता है ॥ २८०२-२८०३ ॥ ९१७०६०५ - ३५५६८४ : २१२ x १ = ४१५७९३१३ भ. क्षे. का आदिविष्कम्भ ।
अथवा
भरतादिक क्षेत्रोंके बाह्य विस्तारमेंसे आदिम विस्तारको घटाकर जो शेष रहे उसमें आठ लाखका भाग देने पर इच्छित स्थानमें क्षय-वृद्धिका प्रमाण आता है ॥ २८०४ ॥
६५४४६२१३ - ४१५७९३९३८००००० = ४२१६४९४ हा. वृ.।
इकतालीस हजार पांचसौ उन्यासी योजन और एकसौ तिहत्तर भाग अधिक भरतक्षेत्रका अभ्यन्तरविस्तार है ॥ २८०५ ॥ ४१५७९३१३।।
भरतक्षेत्रके मूलविस्तारको चारसे गुणा करनेपर हैमवतक्षेत्रका अभ्यन्तरविस्तार और इसको भी चारसे गुणा करनेपर हरिवर्षका अभ्यन्तरविस्तार होता है ॥ २८०६ ।।
हैमवत १६६३१९३२६ । हरि ६६५२७७३१३ ।। हरिवर्षक्षेत्रके विस्तारको चारसे गुणा करनेपर विदेहक्षेत्रका अभ्यन्तरविस्तार होता है। फिर इसके आगे शेष क्षेत्रोंके विस्तारमें क्रमशः चतुर्गुणी हानि होती गई है ॥ २८०७॥
विदेह २६६११०८१५ । रम्यक ६६५२७७१३ । हैरण्यवत १६६३१९५३ । ऐरावत ४१५७९२ १३ । ... इसप्रकार अपने अपने क्षेत्रोंका आदिम विस्तार आदि है । अब बाह्य चरम प्रदेशपर इनका अन्तिम विस्तार कहा जाता है ॥ २८०८ ॥
१ द ब हेमवभूये. २ द ब बाहिरदुचरिमपदेसे रुंदंतिवत्ति.
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