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________________ -४.२७५२]] चउत्थो महाधियारो [१९५ - पोक्खरवरी त्ति दीवो परिवेढदि कालजलणिहि सयलं । जोयणलक्खा सोलस रुंदजुदो चक्कवालेणं ॥२७४४ १६०००००। मणुसुत्तरधरणिधरं विण्णासभरहवसुमही तम्मि | कालविभागं हिमगिरि हेमवदो तह महाहिमवं ॥२७४५ हरिव रिसो णिसहद्दी विदेहणीलगिरिरम्मवरिसाइं । रुम्मिगिरी हेरण्णवसिहरी एरावदो त्ति वरिसोय ॥२७४६ एवं सोलससंखा पोक्खरदीवम्मि अंतरहियारा । एहि ताण सरूवं वोच्छामो आणुपुब्बीए ॥ २७४७ कालोदयजगदीदो समतदो अट्टलक्खजोयणया। गंतूणं तं परिदो परिवेढदि माणसुत्तरो सेलो ॥ २७४८ ८०००००। तग्गिरिणो उच्छेहो सत्तरससयाणि एकवीस च। तीसब्भहिया जोयणचउस्सया गाढमिगिकोसं ॥ २७४९ १७२१ । १३० को । जोयणसहस्समेकं बावीसं सगसयाणि तेवीसं । चउसयचउवीसाइं कमरुंदा मूलमज्झसिहरेसुं ॥ २७५० १०२२ । ७२३ । ४२४ । ( अभंतरम्मि भागे टंकुक्किण्णो बहिम्मि कमहीणो । सुरखेयरमणहरणो अणाइणिहणो सुवण्णणिहो ॥ २७५१) चोइस गुहाओ तस्सि समतदो होंति दिवरयणाओ। विजयाणं बहुमज्झे पणिधीसु फुरंतकिरणाओ ॥ २७पर इस सम्पूर्ण कालसमुद्रको, सोलह लाख योजनप्रमाण विस्तारसे संयुक्त पुष्करवरद्वीप मण्डलाकारसे वेष्टित किये हुए है ॥ २७४४ ॥ १६००००० । इस पुष्करद्वीपके कथनमें मानुषोत्तरपर्वत, विन्यास, भरतक्षेत्र, उसमें कालविभागं, हिमवानपर्वत, हैमवतक्षेत्र, महाहिमवान्पर्वत, हरिवर्ष, निषधंपर्वत, विदेह, नीलगिरि", रम्यकवर्ष, रुक्मैिपर्वत, हैरण्यवंतक्षेत्र, शिखेरीपर्वत, और ऐरावतक्षेत्र, इसप्रकार ये सोलह अन्तराधिकार हैं । अब अनुक्रमसे . यहां उनका स्वरूप कहा जाता है ।। २७४५-२७४७ ॥ ____ कालोदकसमुद्रकी जगतीसे चारों ओर आठ लाख योजन जाकर मानुषोत्तर नामक पर्वत उस द्वीपको सब तरफसे वेष्टित किये हुए है ॥ २७४८ ॥ ८००००० । इस पर्वतकी उंचाई सत्तरहसौ इक्कीस योजन और अवगाह चारसौ तीस योजन व एक कोसप्रमाण है ॥ २७४९ ॥ उत्सेध १७२१ यो. । अबगाह ४३० यो. १ को.।। इस पर्वतका विस्तार मूल, मध्य व शिखरपर क्रमसे एक हजार बाईस, सातसौ तेईस और चारसौ चौबीस योजनमात्र है ॥ २७५० ॥ मूलविस्तार १०२२ । मध्यविस्तार ७२३ । शिखर विस्तार ४२४ यो. । देव व विद्याधरोंके मनको हरनेवाला, अनादिनिधन और सुवर्णके सदृश यह मानुषोत्तर पर्वत अभ्यन्तरभागमें टंकोत्कीर्ण और बाह्यभागमें क्रमसे हीन है ॥ २७५१ ॥ उस पर्वतमें चारों ओर क्षेत्रोंके बहुमध्यभागमें उनके पार्श्वभागोंमें प्रकाशमान किरणोंसे संयुक्त दिव्यरत्नमय चौदह गुफायें हैं ॥ २७५२ ॥ २ द ब रुम्म'. २ द ब वोच्छामि. ३ द ब गगरीदो. ४ द माणुसुत्तरा, व माणुसुत्तर'. ५द एकतीस च. ६ द १७३१. ७ ब मूलमज्झि. ८ द ब रयणमओ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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