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________________ ४९२ ] तिलोयपण्णत्ती [ १.२७२० अट्टत्ताला दीवा दिसासु विदिसासु अंतरेसुं च । चउवीसभंतरए बाहिरए तेत्तिया तस्स ॥ २७२० अभंतरम्मि दीवा चत्तारि दिसासु तह य विदिसासुं । अंतरदिसासु अट्ठ य अट्ठ य गिरिपणिधिभागेसु ॥२७२१ ४।४।८।८। जोयणपंचसयाणिं पण्णभहियाणि दोतडाहितो । पविसिय दिसासु दीवा पत्तेकं दुसयविक्खंभो ॥२७२२ __ ५५० । २००। जोयणयछस्सयाणिं पण्णभहियाणि दोतडाहितो। पविसिय विदिसादीवा पत्तेक एक्सयरुंदं ॥ २७२३ ६५० । १००। जोयणपंचसयाइं पण्णब्भहियाणि बेतडाहिंतो। पविसिय अंतरदीवा पण्णारुंदा ये पत्तेकं ॥ २७२४ ५५० । ५०। छञ्चिय सयाणि पण्णाजुत्ताणि जोयणाणि दुतडादो । पविसिय गिरिपणिधीसं दीवा पण्णासविक्खभा ॥ २७२५ ६५० । ५०। पत्तेक ते दीवा तडवेदीतारणेहि रमणिज्जा । पोक्खरणीवावीहि कप्पदुमेहिं पि संपुण्णा ॥ २७२६ इस समुद्रके भीतर दिशाओं, विदिशाओं और अन्तरदिशाओंमें अडतालीस द्वीप हैं । इनमेंसे चौबीस उसके अभ्यन्तरभागमें और चौबीस ही बाह्यभागमें भी हैं ॥ २७२० ॥ __ उसके अभ्यन्तरभागमें दिशाओंमें चार, विदिशाओंमें चार, अन्तरदिशाओंमें आठ और पर्वतोंके पार्श्वभागोंमें भी आठ ही द्वीप हैं ॥ २७२१ ॥ ४ + ४ + ८ + ८ = २४ । इनमेंसे दिशाओंके द्वीप दोनों तटोंसे पांचसौ पचास योजनप्रमाण समुद्र में प्रवेश करके स्थित हैं । इन द्वीपोंमेंसे प्रत्येकका विस्तार दोसौ योजनप्रमाण है ॥ २७२२ ।। समुद्रतटसे दूर ५५० । विष्कम्भ २०० यो.। दोनों तटोंसे छहसौ पचास योजनप्रमाण समुद्र में प्रवेश करने पर विदिशाओंमें द्वीप स्थित हैं । इनमेंसे प्रत्येक द्वीपका विस्तार एकसौ योजनमात्र है ॥ २७२३ ॥ समुद्रतटसे दूर ६५० । विष्कम्भ १०० यो । दोनों तटोंसे पांच सौ पचास योजन प्रवेश करके अन्तरद्वीप स्थित हैं । इनमेंसे प्रत्येकका विस्तार पचास योजनमात्र है ।। २७२४ ॥ समुद्रतटसे दूर ५५० । विष्कम्भ ५० यो. । दोनों तटोंसे छहसौ पचास योजन प्रवेश करके पर्वतोंके प्रणिधिभागोंमें अन्तरद्वीप स्थित हैं । उनमें से प्रत्येकका विस्तार पचास योजनप्रमाण है ॥ २७२५ ॥ समुद्रतटसे दूर ६५० । विष्कम्भ ५० यो.। वे प्रत्येक द्वीप तटवेदी व तोरणोंसे रमणीय और पुष्करिणी वापिकाओं एवं कल्पवृक्षोंसे परिपूर्ण हैं ॥ २७२६ ॥ १ ब विदिसासु. २ द ब पण्णासंदा य. ३ दब विक्खंभो. ४ दबवावीओ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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