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________________ -४.२६५५] चउत्थो महाधियारो [४७९ पणतितितियछप्पणयं अंसा ता एव लंगलावत्ते । महवप्पे' विजयाए पत्तेक मज्झिमं दीहं ॥ २६५१ ५६३३३५ । १३२ २१२ णबइगिणवसगछप्पण भागा ता एव दोसु विजयाणं । अंतिल्लयदीहत्तं आदिल्लं दोविभंगसरियाणं ॥ २६५२ ५६७९१९ । १३२] २१२ अडतियणभअडछप्पण अंसा चउसीदिअधियसयमेतं । गंभीरमालिणीए मज्झिल्लं पंकगावदिए॥२६५३ ५६८०३८ । १८४ २१२ अडपणइगिअडछप्पण अंसा चउवीसमेत्तदीहत्तं । दोणं णदीण अंतं आदिल्लं दोसु विजयाणं ॥ २६५४ ५६८१५८ । २४ २१२ दुचउसगदोणिसगपण अंककमे अंसमेव पुवुत्त । मज्झिल्लयदीहत्तं पोक्खलविजए सुवप्पाए ॥ २६५५ ५७२७४२ । २४ २१२ पांच, तीन, तीन, तीन, छह और पांच, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या निर्मित हो उतने योजन और पूर्वोक्त एकसौ बत्तीस भाग अधिक लांगलावर्ता व महावप्रा देशोंमेंसे प्रत्येककी मध्यम लंबाई है ॥ २६५१ ॥ ५५८७५१३३३ + ४५८४ = ५६३३३५३३३ । । ___ नौ, एक, नौ, सात, छह और पांच, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और पूर्वोक्त एकसौ बत्तीस भाग अधिक उक्त दोनों देशोंकी अन्तिम तथा गंभीरमालिनी और पंकवती नामक दो विभंगनदियोंकी आदिम लंबाई है ॥ २६५२ ॥ ५६३३३५३३३ + ४५८४ = ५६७९१९३३३ । आठ, तीन, शून्य, आठ, छह और पांच, इन अंकोंसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ चौरासी भाग अधिक गंभीरमालिनी व पंकवती नदियोंकी मध्यम लंबाई है ॥ २६५३ ॥ ५६७९१९३३३ + ११९:५२ = ५६८०३८३८३।। आठ, पांच, एक, आठ, छह और पांच, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और चौबीस भागमात्र अधिक उक्त दोनों नदियोंकी अन्तिम तथा पुष्कला एवं सुवप्रा विजयकी आदिम लंबाई है ॥ २६५४ ॥ ५६८०३८१६४ + ११९,५२ = ५६८१५८२४ ।। दो, चार, सात, दो, सात और पांच, इन अंकोंके क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और पूर्वोक्त चौबीस भाग अधिक पुष्कला व सुवप्रा विजयकी मध्यम लंबाई है ॥ २६५५॥ ___ ५६८१५८२.४३ + ४५८४ = ५७२७४२३२३ । १द तहवप्पे, २ द ब संपत्तेक मज्झिमदीहतं. ३ द सरीणं, ब सरीरं. ४द पुव्वंता, ब पुव्वुत्ता. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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