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________________ -४. २५४२ ] चउत्थो महाधियारो . [ ४६१ णिसहसमाणुच्छेहा' संलग्गा लवणकालजलहीणं । अब्भंतरम्मि बाहिं अंकैमुहा ते खुरप्पसंठाणा ॥२५३३ जोयणसहस्समेकं रुंदा सम्वत्थ ताण पत्तेकं । जोयणसयमवगाढा कणयमया ते विराजंति ॥ २५३४ एकेका तडवेदी तेसिं चेटेदि दोसु पासेसुं । पंचसयदंडवासा धुवंतधया दुकोस उच्छेहा ॥ २५३५ ताणं दोपासेसं वणसंडा वेदितोरणेहि जुदा । पोक्खरणीवावीहिं जिणिंदपासादरमणिजा ॥२५३६ वणसंडेसु दिवा पासादा विविहरयणणियरमया । सुरणरमिहुणसणाहा तडवेदीतोरणेहिं जुदा ॥ २५३७ उवरि उसुगाराणं समतदो हवदि दिव्वतडवेदी । वण-वणवेदी पुचप्पयारवित्थारपरिपुण्णा ॥ २५३८ चत्तारो चत्तारो पत्तेक्कं होंति ताण वरकूडा । जिणभवणमादिकूडे सेसेसुं वेतरपुराणिं ॥ २५३९ तद्दीवे जिणभवणं वेंतरदेवाण दिवपासादा । णिसहपवण्णिदजिणभवणवंतरावाससारिच्छा ॥ २५४० दोसुं इसुगाराणं विश्वाले होंति ते दुवे विजया । जे होति जंबुदीवे तेत्तियदुगुणकदा धादईसंडे ॥२५४१ सेलसरोवरसरिया विजया कुंडा य जेत्तिया होति । णाणाविण्णासँजुदा ते संलीणा य धादईसंडे ॥ २५४२ __ लवण और कालोद समुद्रसे संलग्न वे दोनों पर्वत निषधपर्वतके समान ऊंचे, तथा अभ्यन्तर भागमें अंकमुख व बाह्य भागमें क्षुरप्रके आकार हैं ॥ २५३३ ॥ उन दोनों पर्वतों से प्रत्येकका विस्तार सर्वत्र एक हजार योजनप्रमाण है । एकसौ योजनप्रमाण अवगाहसे सहित वे सुवर्णमय पर्वत विराजमान हैं ॥ २५३४ ॥ उन पर्वतोंके दोनों पार्श्वभागोंमें पांच सौ धनुषप्रमाण विस्तारसे सहित, दो कोस ऊंची और फहराती हुई ध्वजाओंसे संयुक्त एक एक तटवेदी है ॥ २५३५ ॥ उन वेदियोंके दोनों पार्श्वभागोंमें वेदी, तोरण, पुष्करिणी एवं वापिकाओंसे युक्त और जिनेन्द्रप्रासादोंसे रमणीय वनखंड हैं ॥ २५३६ ॥ ___ इन वनखण्डोंमें देव व मनुष्योंके युगलोंसे सहित, तटवेदी व तोरणोंसे युक्त और विविध प्रकारके रत्नोंके समूहोंसे निर्मित दिव्य प्रासाद हैं ॥ २५३७ ॥ ___ इष्वाकार पर्वतोंके ऊपर चारों ओर पूर्वोक्तप्रकार विस्तारसे परिपूर्ण दिव्य तटवेदी, वन और वनवेदी स्थित है ॥ २५३८ ॥ उन प्रत्येक पर्वतोंपर चार चार उत्तम कूट हैं । इनमेंसे प्रथम कूटके ऊपर जिनभवन और शेष कूटोंके ऊपर व्यन्तरोंके पुर हैं ॥ २५३९ ॥ उस द्वीपमें जिन भवन और व्यन्तरदेवोंके दिव्य प्रासाद निषधपर्वतके वर्णनमें निर्दिष्ट जिन भवन और व्यन्तरावासोंके सदृश हैं ॥ २५४०॥ दोनों इष्वाकारों के मध्यमें वे क्षेत्र दो दो हैं । जो क्षेत्र जम्बूद्वीपमें हैं उनसे दुगुणे धातकीखण्डमें हैं ॥ २५४१ ॥ नाना प्रकारके विन्याससे युक्त जितने पर्वत, तालाब, नदियां, क्षेत्र और कुण्ड हैं, वे धातकीखण्डमें भी शोभायमान है ॥ २५४२ ॥ १ द णिसहमाणुच्छेदा'. २ द अंसुमुहा, ब अंकुमुहा. ३ ब दुक्कोस. ४ द व पुव्वापयार'. ५ द ब तद्दीवं. ६ दबतेत्तिय दुगुणकदो धादईसंडो. ७ दणाणाविण्णाससालिण. ८ द ब सालिण धादइ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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