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________________ ४६०] तिलोयपण्णत्ती [४. २५२५ बाहिरसूईवग्गो अभंतरसइवग्गपरिहीणो। लक्खस्स कदीहि हिदो जंबूदीवप्पमाणया खंडा ॥ २५२५ चउवीस जलहिखंडा जंबूदीवप्पमाणदो होति । एवं लवणसमुद्दो वाससमासेण णिहिट्ठो ॥ २५२६ ।एवं लवणसमुदं गदं । धादइसंडो दीओ परिवढदि लवणजलणिहि सयलं । चउलक्खजोयणाई वित्थिण्णो चक्कवालेणं ॥ २५२७ जगदीविण्णासाई भरहखिदी तम्मि कालभेदं च । हिमगिरिहेमवदा महहिमवं हरिवरिसणिसहद्दी ॥ २५२८ विजओ विदेहणामो णीलगिरी रम्मवरिसरुम्मिगिरी । हेरण्णवदो विजओ सिहरी एरावदोत्ति वरिसोय ॥२५२९ एवं सोलसभेदा धादइसंडस्स अंतरहियारा । एहि ताण सरूवं वोच्छामो भाणुपुवीए ॥२५३० तद्दीवं परिवेढदि समंतदो दिवरयणमयजगदी। जंबुदीवपवण्णिदजगदीए सरिसवण्णणया ॥ २५३१ । जगदी समत्ता । दक्खिणउत्तरभाए उसुगारा दक्खिणुत्तरया । एक्केको होदि गिरी धादहसंडं पविभेजती ॥ २५३२ बाह्य सूचीके वर्ग से अभ्यन्तर सूचीके वर्गको कम करनेपर जो शेष रहे, उसमें एक लाखक वर्गका भाग देनेपर लब्ध संख्याप्रमाण जम्बूद्वीपके समान खण्ड होते हैं ॥ २५२५ ॥ ___उदाहरण-लवणसमुद्रकी बाह्य सूची ५ लाख और अभ्यन्तर सूची १ लाख यो. है । अतः उसके जम्बूद्वीपप्रमाण खण्ड इसप्रकार होंगे-. (५०००००२ - १०००००२ ) १०००००२ = २४ खण्ड । जम्बूद्वीपके प्रमाण लवणसमुद्रके चौबीस खण्ड होते हैं । इसप्रकार संक्षेपमें लवणसमुद्रका विस्तार यहां बतलाया गया है ॥ २५२६ ॥ इसप्रकार लवणसमुद्रका वर्णन समाप्त हुआ । धातकीखंडद्वीप इस सम्पूर्ण लवणसमुद्रको वेष्टित करता है । मण्डलाकारसे स्थित यह द्वीप चार लाख योजनप्रमाण विस्तारसे संयुक्त है ॥ २५२७ ॥ ४००००० । जगंती, विन्यासे, भरतक्षेत्र, उसमें कालभेदँ, हिमवान्पर्वत, हैमवतक्षेत्र, महाहिमवान्पर्वत हरिवर्षक्षेत्र,निषधपर्वत, विदेहक्षेत्र ,नीलपर्वत ,रम्यकक्षेत्र, रुक्मिपर्वत , हैरण्यवतक्षेत्र ,शिखरीपर्वत और ऐरावतक्षेत्र , इसप्रकार धातकीखण्डद्वीपके वर्णनमें ये सोलह भेदरूप अन्तराधिकार हैं। अब अनुक्रमसे इनके स्वरूपका कथन करते हैं ।। २५२८-२५३० ॥ उस धातकीखण्डद्वीपको चारों तरफसे दिव्य रत्नमय जगती वेष्टित करती है। इस जगतीका वर्णन जम्बूद्वीपमें वर्णित जगतीके ही समान है ॥ २५३१ ॥ जगतीका कथन समाप्त हुआ। धातकीखण्डद्वीपके दाक्षण और उत्तरभागमें इस द्वीपको विभाजित करनेवाला व दक्षिणउत्तर लंबा एक एक इष्वाकार पर्वत है ॥ २५३२ ॥ १ द ब कदिम्हि. २ द ब परिवेददि. ३ द ब एण्हं. ४ दब दीव'. ५ द ब पविभजंतं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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