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तिलोयपण्णत्ती
[ ४. २०९६
पणवीसजोयणाई अवगाढा ते फुरंत मणिकिरणा । तिगुणिदणियवित्थारा आदरिता ताण परिद्दीओ ॥ २०९६
२५ ।
चडतोरणवेदीहिं मूले उवरिभ्मि उववणवणेहेिं । पोक्खरणीहिं रम्मा कणयगिरी मणहरा सव्वे ॥ २०९७ कणयगिरीणं' उवरिं पासादा कणयरजदरयणमया । णवंतघयवदाया कालागरुधूवगंधड्डा ।। २०९८ यमकं मेघगिरि व कंचणसेलाण वण्णणं सेसं । णवरि विसेसो कंचणणामवेंतराणे वासेदे ॥ २०९९ दुसहस्सजोयणाणि बाणउदी दो कलाउ पविहत्ता । उणवीसेहिं गच्छिय विज्जुदहादो' य उत्तरे भागे ॥ २१००
२०९२ । क २ ।
१९
चेट्ठेदि दिग्ववेदी जोयणकोसद्ध उदयवित्थारा । पुन्वावरभाएसुं संलग्गा गयदंतसेलाणं ॥ २१०१
जो १ । को १ ।
२
चरियट्टालयविउर्लो बहुतोरणदारसंजुदा रम्मा | दारोपरिमतलेसुं सा जिणभवणेहिं संपुष्णा ॥ २१०२ पुव्वाबर भाए सीदोदणदीए भद्दसालवणे । सिद्धिकयंजणसेला णामेणं दिग्गइंदित्ति' ॥ २१०३ जोयणसयमुत्तुंगा तेत्तियपरिमाणमूलवित्थारा | उस्सेहतुरिमगाढा पण्णासा सिहर विक्खंभो ॥ २१०४
१०० । १०० । २५ । ५० ।
प्रकाशमान मणिकिरणोंसे सहित वे पर्वत पच्चीस योजन गहरे हैं। इनकी परिधियां अपने तिगुणे विस्तारसे अधिक ह || २०९६ ।। २५ ।
ये सब मनोहर कनकगिरि मूलमें व ऊपर चार तोरणवेदियों, वन-उपवनों और पुष्करियोंसे रमणीय हैं ॥ २०९७ ॥
कनकगिरियों के ऊपर सुवर्ण, चांदी एवं रत्नोंसे निर्मित, नाचती हुई ध्वजापताकाओं से सहित और कालागरु धूपकी गन्धसे व्याप्त प्रासाद ह || २०९८ ॥
कांचन शैलों का शेष वर्णन यमक और मेघगिरिके समान है । विशेषता केवल इतनी है कि ये पर्वत कांचन नामक व्यन्तर देवोंके निवास छ । २०९९ ॥
विद्युत्से उत्तरकी ओर दो हजार बानबै योजन और उन्नीससे विभक्त दो कलाप्रमाण ( २०९२ ) जाकर एक योजन ऊंची, अर्ध कोसप्रमाण विस्तार से सहित और पूर्व-पश्चिम भागों में गजदन्तपर्वतों से संलग्न दिव्य वेदी स्थित है || २१०० - २१०१ ॥ यो. १ । को. ३ ।
वह वेदी विपुल मार्ग और अट्टालयों से सहित, बहुत तोरणद्वारोंसे संयुक्त और द्वारोंके उपरिम भागों में स्थित जिनभवनोंसे परिपूर्ण है || २१०२ ॥
भद्रशालवन के भीतर सीतोदानदकेि पूर्व-पश्चिम भागोंमें सिद्धिक ( स्वस्तिक) और अंजन नामक दिग्गजेन्द्र पर्वत हैं ॥ २१०३ ॥
पर्वत एकसौ योजन ऊंचे, इतने ही प्रमाण मूलविस्तार से सहित और ऊंचाई के चतुर्थ भागप्रमाण पृथिवीमें गहरे हैं । तथा इनका शिखरविस्तार पचास योजनमात्र है || २१०४ ॥ १०० । १०० । ५० । २५ ।
१ द ब कणयमईणं. २ द ब णामा वैतरं पि. ३ द ब उज्जुदहादो. ४ द ब विरदा. ५ द व दिग्गरिदेत्ति.
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