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________________ -४. २०९५] चउत्थो महाधियारो जमकंमेघसुराणं भवणेहितो दिसाए पुग्वाएं । एकेकं जिणगेहा पंढुगजिणगेहसारिच्छा ॥ २०८७ पंडुगजिणगेहाणं मुहमंडवपहुदिवण्णणा सम्वा । जा पुन्वस्सि भाणदा सा जिणभवणाण एदाणं ॥ २००८ जमकंमेघगिरीदो पंचसया जोयणाणि गंतूणं । पंचदहाँ पत्तेकं सहस्सदलजोयणंतरिदा ॥२०८९ ।। ५००। उत्तरदक्खिणदीहा सहस्समेकं हवंति पत्तेकं । पंचसयजोयणाई रुंदी दसजोयणवगाढा ।। २०९० १०००। ५००।१०। णिसहकुरुसूरसुलसा बिज्जूणामेह होति ते पंच । पंचाणं बहुमज्झे सीदादा सा गदा सरिया ॥ २०११ हॉति दहाणं मझे अंबुजकुसुमाण दिन्वभवणेसुं । णियणियदहण अवसेसवण्णणाओ जाओ पउमड़हम्मि भणिदाओ । ताओ श्चिय एदेसु णादवाओ वरदहेसु ॥ २०९३ एकेकस्स दहस्स य पुवदिसाए य अवरदिब्भाए । दह दह कंचणसेला जोयणसयमेत्तउच्छेहा ॥२०९४ रुंदं मूलम्मि सदं पण्णत्तरि जोयणाणि मज्झम्मि । पण्णासा सिहरतले पत्तेक्कं कर्णयसेलाणं ॥२०१५ १००। ७५ । ५० । यमक और मेघ सुरोंके भवनोंसे पूर्वदिशामें पाण्डुकवनके जिनमन्दिरसदृश एक एक जिनभवन हैं ॥ २०८७ ॥ पहिले पाण्डुकवनमें स्थित जिनभवनोंके मुखमण्डपादिकका जो सब वर्णन किया गया है, वही वर्णन इन जिन भवनोंका भी समझना चाहिये ॥ २०८८ ॥ ___ यमक और मेघगिरिसे आगे पांचसौ योजन जाकर पांच द्रह हैं, जिनमें प्रत्येकके बीच अर्ध सहस्र अर्थात् पांचसौ योजन का अन्तराल है ।। २०८९ ॥ ५०० । . प्रत्येक द्रह एक हजार योजनप्रमाण उत्तर-दक्षिण लंबे, पांचसौ योजन चौड़े और दश योजन गहरे हैं ॥ २०९० ॥ १००० । ५०० । १० । निषध, कुरु (देवकुरु), सूर, सुलस और विद्युत्, ये उन पांच द्रहोंके नाम हैं । इन पांचों द्रहोंके बहुमध्यभागमेंसे सीतोदा नदी गई है ॥ २०९१ ॥ द्रहोंके मध्यमें कमलपुष्पोंके दिव्य भवनोंमें अपने अपने द्रहके नामवाले नागकुमारदेवोंके निवास हैं ॥ २०९२ ॥ अवशेष वर्णनायें जो पमहके विषयमें कही गई हैं, वे ही इन उत्तम द्रहोंके विषयमें भी जानना चाहिये ।। २०९३ ॥ ___प्रत्येक द्रहके पूर्व और पश्चिम दिग्भागमें एकसौ योजन ऊंचे दश दश कांचनशैल हैं. ॥ २०९४ ॥ १००। इन प्रत्येक कनकपर्वतोंका विस्तार मूलमें सा, मध्यमें पचत्तर और शिखरतलमें पचास योजनप्रमाण है ॥ २०९५ ॥ १०० । ७५ । ५० । १ ब भवणेहिंते. २ द पुन्वाय. ३ द ब पंचदहो. ४ द ब रुंदं. ५ द ब रदा. ६ द ब°णामाओ. ७दणामा, बणासा. ८ दब जादी पउद्दहम्मि, ९ दब उच्छेहो. १०द जणय, बजाणय, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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