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________________ ३९२ ] तिलोयपण्णत्ती. [ ४. १९२१ - ततो विचित्तरूवा पासादा दिव्वरयणणिम्मविदा । कोसलय मेत्तउदया कमेण पण्णासदीह वित्थिष्णा ।। १९२१ जे जेट्ठदारपुरदो दिव्वमुहमंडवादि कहिदा य' । ते खुल्लयदारेसुं हवंति अद्धप्पमाणेहिं ॥ १९२२ तत्तो परदो वेदी एदाणिं वेढिदूण' सव्वाणि । चेट्ठदि चरिअहालयगोउरदोरहिं कणयमई ॥ १९२३ तीए परदो वरिया तुंगेहिं कणयरयणथंभेहिं । चेति चउदिसासुं दसप्पयारा धयणिबंधा ॥ १९२४ हरिकरिवसहखगाहिवसिद्दिससिरविहंसकमलचक्कधया । भट्ठत्तरसयसंखा पत्तेक्कं तेत्तिया खुल्ला ॥ १९२५ चामीयरवरवेदी एदाणिं वेढिदूर्ण चेट्ठेदि । विष्फुरिदरयणकिरणा चउगोउरदाररमणिजा ॥ १९२६ बे कोसाणिं तुंग वित्थारेणं धणूणि पंचसया । विष्फुरिदधर्यैवदाया फडिहमयाणेयवरभित्ती ॥ १९२७ को २ । दं ५०० । तीए परदेो दसविह्नकपतरू ते समंतदो होंति । जिणभवणेसुं तिहुवणविम्हयजणणेहिं रूवेहिं ॥ १९२८ गोमेदयमयखंधा कंचणमयकुसुमणियररमणिजा । मरगयमयपत्तधरा विद्मवेरुलियपउमरायफला ॥ १९२९ सब्वे अणाइणिहणा अकट्टिमा कप्पपायवपयारा । मूलेसु चउदिसासुं चत्तारि जिर्णिदपडिमा । १९३० इसके आगे सौ कोस ऊंचे और क्रमसे पचास कोस लंबे-चौड़े, दिव्य रत्नोंसे निर्मित विचित्र रूपवाले प्रासाद हैं ॥ १९२१ ॥ ज्येष्ठ द्वारके आगे जो दिव्य मुखमण्डपादिक कहे जा चुके हैं, वे आधे प्रमाणसे सहित क्षुद्रद्वारोंमें भी हैं ॥ १९२२ ॥ इसके आगे मार्ग, अट्टालिकाओं और गोपुरद्वारोंसे सहित सुवर्णमयी वेदी इन सबको वेष्टित करके स्थित है ॥ १९२३ ॥ इस वेद के आगे चारों दिशाओं में सुवर्ण एवं रत्नमय उन्नत खम्भों से सहित दश प्रकारकी श्रेष्ठ ध्वजपंक्तियां स्थित हैं ॥। १९२४ ॥ सिंह, हाथी, बैल, गरुड़, मोर, चन्द्र, सूर्य, हंस, कमल और चक्र, इन चिह्नोंसे युक्त ध्वजाओं में से प्रत्येक एकसौ आठ और इतनी ही क्षुद्रध्वजायें हैं ॥ १९२५ ॥ प्रकाशमान रत्नकिरणोंसे संयुक्त और चार गोपुरद्वारोंसे रमणीय सुवर्णमय उत्तम वेदी इनको वेष्टित करके स्थित है ॥ १९२६ ॥ यह वेदी दो कोस ऊंची, पांचसौ धनुष चौड़ी, फहराती हुई ध्वजापताकाओंसे सहित और स्फटिक मणिमय अनेक उत्तम मित्तियों से संयुक्त है ॥ १९२७ ॥ को. २ । दं. ५०० । इसके आगे जिन भवनों में चारों ओर तीनों लोकोंको आश्चर्य उत्पन्न करनेवाले खरूपसे संयुक्त वे दश प्रकार के कल्पवृक्ष हैं ॥ १९२८ ॥ सब प्रकारके कल्पवृक्ष गोमेदमणिमय स्कन्धसे सहित, सुत्रर्णमय कुसुमसमूह से रमणीय, मरकतमणिमय पत्तोंको धारण करनेवाले, मूंगा, नीलमणि एवं पद्मरागमणिमय फलोंसे संयुक्त, अकृत्रिम और अनादिनिधन हैं । इनके मूलमें चारों ओर चार जिनेन्द्रप्रतिमायें विराजमान हैं ॥। १९२९-१९३० ॥ १ ब मुहरुंदवादिकहिदा ये. २ द ब बेदिदूण ३ द व तुंगो. ४ ब धयवदेहा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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