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________________ –४. १७८२ ] चउत्थो महाधियारो भरहस्स इसुपमाणे पंचाणउदाहिं ताडिदम्मि पुढं । रयणायरतीरादो विदेहभद्धो त्ति सो बाणी ॥ १७७६ अट्ठावण्णसहस्सा इगिलक्खा तेरसुत्तरं च सयं । सगकोसाणं अद्धं महाविदेहस्स धणुपटुं॥ १७७७ १५८११३ । ७। जोयण उणैतीससया इगिवीसं अट्ठरस तहा भागा। एदं महाविदेहे णिहिटुं चूलियामाणं ॥ १७७८ २९२१ । १८॥ सोलससहस्सयाणिं अट्ठसया जोयणागि तेसीद। । अद्धाधियअटकला महाविदेहस्स पस्सभुजा ॥ १७७९ १६८८३ । १७ । वरिसे महाविदेहे बहुमज्झे मंदरो महासेलो। जम्माभिसेयपीढो सव्वाणं तित्थकत्ताणं ॥ १७८० जोयणसहस्सगाढो णवणवदिसहस्समेत्तउच्छेहो । बहुविहवणसंड जुदो णाणावररयणरमणिजो ॥१७८१ १००० । ९९०००। दस य सहस्सा णउदी जोयणया दसकलेक्करसभागा। पायालतले रुंदै समवट्टतणुस्स मेरुस्स ॥ १७८२ १००९०।१०। ११ भरतक्षेत्रके बाणप्रमाणको पंचान बैसे गुणा करनेपर जो गुणनफल प्राप्त हो उतना समुद्रके तीरसे आधे विदेहक्षेत्रका बाणप्रमाण होता है ।। १७७६ ॥ १०९९ ९५ = ९५९:०० = ५०००० योजन । महाविदेहका धनुपृष्ठ एक लाख अट्टावन हजार एकसौ तेरह योजन और सात कोसोंका आधा अर्थात् साढ़े तीन कोसप्रमाण है ॥ १७७७ ॥ यो. १५८११३, को.५ । महाविदेहक्षेत्रकी चूलिकाका प्रमाण उनतीससौ इक्कीस योजन तथा अठारह भागमात्र है ॥ १७७८ ॥ २९२१ १६ । महाविदेहकी पार्श्वभुजा सोलह हजार आठसौ तेरासी योजन और साढ़े आठ कलाप्रमाण है ॥ १७७९ ॥ १६८८३३४ । महाविदेहक्षेत्रके बहुमध्यभागमें सब तीर्थंकरोंके जन्माभिषेकका आसनरूप मन्दर नामक महापर्वत है ॥ १७८० ॥ _यह महापर्वत एक हजार योजन गहरा, निन्यानबै हजार योजन ऊंचा, बहुत प्रकार के वनखंडोंसे युक्त और अनेक उत्तम रत्नोंसे रमणीय है ॥ १७८१ ॥ १००० । ९९००० । इस समानगोल शरीरवाले मेरूपर्वतका विस्तार पातालतलमें दश हजार नब्बै योजन और एक योजनके ग्यारह भागोंमेंसे दश भागप्रमाण है ॥ १७८२ ॥ १००९०१३ । १द ब इसुपमाणो. २ द ब 'तीरूढो. ३ द ब उणवीस. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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