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तिलोयपण्णत्ती
तस्स य उत्तरजीवा चडवीससहस्सणवसयाई पि । बत्तीसं एक्ककला सव्वसमासेण णिहिट्ठा || १६२५
२४९३२ । १ ।
१९
खुल्लहिमवंतसेले उत्तरभागम्मि होदि धणुपद्वं । पणुवीससहस्साइं दोण्णिसया तीस चउकलब्भहिया ॥ १६२६ २५२३० । ४ ।
१९
[ ४. १६२५
तस्य चूलियमाणं पंचसहस्त्राणि जोयणाणं पि । तीसाधियदोण्णिसया सत्तकला अद्धअदिरित्ता ॥ १६२७
५२३० । १५ ।
३८
पंचसहस्सा तिसया पण्णासा जोयणाणि भद्धजुदा । पण्णारस य कलाओ पस्सभुजा खुल्लहिमवंते ॥ १६२८ ५३५० । ३१ ।
३८
हिमवतसरिसीहा ते वेदी दोणि होति भूमितले । बे कोसा उत्तुंगा पंचधणुस्सदपमाणविस्थिण्णा ॥ १६२९ को २ । दं ५०० ।
जो विक्भो उभए पासेसु होदि वणसंडो । बहुतोरणदारजुदा वेदी पुब्विल्लवेदिएहिं समः ॥ १६३० व जो । १ ।
२
खुल्लहिमवंत सिहरे समंतदो पउमवेदिया दिव्वा । वणभवणवेदिसव्वं पुष्वं पिव एत्थ वत्तव्वं ॥ १६३१
हिमवान् पर्वतकी उत्तरजीवा सब मिलाकर चौबीस हजार नौसौ बत्तीस योजन और योजनके उन्नीस भागों में से एक भागप्रमाण है || १६२५ || २४९३२ ।
क्षुद्र हिमवान् पर्वतका धनुषपृष्ठ उत्तरभागमें पच्चीस हजार दोसौ तीस योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमेंसे चार भाग अधिक है ।। १६२६ ।। २५२३०९ ।
इस पर्वतकी चूलिकाका प्रमाण पांच हजार दोसौ तीस योजन और एक योजनके उन्नीस भागों में से साढ़े सात भाग अधिक है ।। १६२७ ॥ ५२३०३८ ।
क्षुद्र हिमवान् पर्वती पार्श्वभुजाका प्रमाण पांच हजार तीनसौ पचास योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमेंसे साढ़े पन्द्रह भाग अधिक है ।। १६२८ ।। ५३५०३८ ।
भूमित पर हिमवान् पर्वतके सदृश लम्बी उसकी दो तटवेदियां हैं । ये वेदियां दो कोस ऊंची और पांचसौ धनुषप्रमाण विस्तारसे युक्त हैं ॥ १६२९ ॥
उत्सेध को २ । विस्तार दण्ड ५०० |
पर्वतके दोनों पार्श्वभागोंमें अर्ध योजनप्रमाण विस्तारसे युक्त वनखण्ड है, तथा पूर्वोक्त वेदियों को समान बहुत तोरणद्वारोंसे संयुक्त वेदी है || १६३० ॥ यो० ।
क्षुद्र हिमवान् पर्वतशिखरपर चारों तरफ पद्मरागमणिमय दिव्य वेदिका है । वन, भवन और वेदी आदि सबका, पहिले के समान यहांपर भी कथन करना चाहिये || १६३१ ॥
१ द 'चवकल. २ द ब नदवेदी ३ द भूमियले ४ द व समो
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